यूसुफ़ ज़फ़र
ग़ज़ल 18
नज़्म 10
अशआर 12
उन की महफ़िल में 'ज़फ़र' लोग मुझे चाहते हैं
वो जो कल कहते थे दीवाना भी सौदाई भी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ज़हर है मेरे रग-ओ-पै में मोहब्बत शायद
अपने ही डंक से बिच्छू की तरह मर जाऊँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
आ मिरे चाँद रात सूनी है
बात बनती नहीं सितारों से
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए
पलकों पे अश्क बन के ठहर जाना चाहिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए