aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mat"
जो बैठा है सफ़-ए-मातम बिछाए मर्ग-ए-ज़ुल्मत परवो नौहागर है ख़तरे में वो दानिश-वर है ख़तरे में
बैठा तो बोरिए के तईं सर पे रख के 'मीर'सफ़ किस अदब से हम फ़ुक़रा की उठा गया
दो घूँट ने बढ़ा दिए रिंदों के हौसलेमीना ओ ख़ुम पे झुक पड़े पैमाना छोड़ कर
'असद' को बोरिए में धर के फूँका मौज-ए-हस्ती नेफ़क़ीरी में भी बाक़ी है शरारत नौजवानी की
है मुअज़्ज़िन जो बड़ा मुर्ग़ मुसल्ली उस कीमस्तों से नोक ही की बात चली जाती है
हर जाम है नज़्ज़ारा-ए-कौसर मिरे हक़ मेंहर गाम है गुलगश्त-ए-मुसल्ला मिरे आगे
इसी जज़ीरा-ए-जा-ए-नमाज़ पर 'सरवत'ज़माना हो गया दस्त-ए-दुआ बुलंद किए
सवाल ही न था दुश्मन की फ़त्ह-याबी काहमारी सफ़ में मुनाफ़िक़ अगर नहीं आते
उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ हैवो अपनी जा-नमाज़ है और ये नमाज़ है
कल 'मीर' ने क्या क्या की मय के लिए बेताबीआख़िर को गिरो रखा सज्जादा-ए-मेहराबी
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