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ग़ज़ल
गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया
मैं तेग़-ए-तेज़ था लेकिन मुझे ज़वाल आया
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
इज़्तिराब-ए-ख़ाक-ए-अमजद में कहीं रहता है वो
काएनात-ए-रूह-ए-अहमद में कहीं रहता है वो
मोहम्मद अजमल नियाज़ी
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नज़्म
तराना-ए-क़ौमी
मर्हबा ऐ ख़ाक-ए-पाक-ए-किश्वर-ए-हिन्दोस्ताँ
यादगार-ए-अहद-ए-माज़ी है तू ऐ जान-ए-जहाँ
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
जन्नत से भी अज़ीज़ है ख़ाक-ए-वतन मुझे
मर कर मिली है चादर-ए-ख़ाक-ए-वतन मुझे
मिट्टी ने इस ज़मीं की दिया है कफ़न मुझे
बर्क़ देहलवी
ग़ज़ल
जिसे मिल जाए ख़ाक-ए-पाक-ए-दश्त-ए-कर्बला 'परवीं'
पलट कर भी न देखे वो कभी इक्सीर की सूरत