aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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देस पब्लिकेशन्स, लाहौर
पर्काशक
देस राज
लेखक
सोवियत देश किताबचे, दिल्ली
सोवियत देस किताबचे
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने काउसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
और क्या देखने को बाक़ी हैआप से दिल लगा के देख लिया
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैंतू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लेंशीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी
Des Des Ki Lok Kahaniyan
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सलीम तमन्नाई
अाज भी उस देस में
हम्ज़ह फ़ारूक़ी
उसे कौन देख सकता कि यगाना है वो यकताजो दुई की बू भी होती तो कहीं दो-चार होता
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चारये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या है
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँमिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
कौन इस घर की देख-भाल करेरोज़ इक चीज़ टूट जाती है
वज़्अ में तुम हो नसारा तो तमद्दुन में हुनूदये मुसलमाँ हैं जिन्हें देख के शरमाएँ यहूद
अजीब होती है राह-ए-सुख़न भी देख 'नसीर'वहाँ भी आ गए आख़िर, जहाँ रसाई न थी
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तिरे पीछेतू देख कि क्या रंग है तेरा मिरे आगे
आइना देख कर तसल्ली हुईहम को इस घर में जानता है कोई
मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगरतू क़रीब आ तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है
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