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नअत
لَم یَاتِ نَظیرُکَ فِی نَظَر مثل تو نہ شد پیدا جانا
جگ راج کو تاج تورے سر سوہے تجھ کو شہ دوسرا جانا
इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी
नज़्म
ज़बाँ-दराज़
ज़बान में फ़ी लफ़्ज़ एक इंच इज़ाफ़ा हो रहा है
पहले भी तो ये काँधों पर पड़ी थी
अम्मार इक़बाल
उद्धरण
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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हास्य
इश्क़ कितने क़िस्म का होता है लिखो बा-वसूक़
फ़ी ज़माना क्या हैं आशिक़ के फ़राएज़ और हुक़ूक़
दिलावर फ़िगार
ग़ज़ल
फ़े पे इक नुक़्ता है और क़ाफ़ पे हैं नुक़्ता दो
काफ़ भी ख़ाली है और लाम भी ख़ाली, ये ले