aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ",e0c"
इंटरनैशनल तब्लीग़ी इस्लामी मिशन, यू. के.
पर्काशक
अल्क घोश
लेखक
एक बी.ए
डायना एल. एक
George Routledge & Sons,Ltd,Carter Lane E.C.
हम एक हैं तंज़ीम भोपाली
ए. बी. सी. ऑफसिट प्रिन्टर्स, दिल्ली
दफ़तर एक आना लाइब्रेरी, लाहाैर
बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल कासो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
इक 'उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूमऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ताएक ही शख़्स था जहान में क्या
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगेइक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिनदेखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के
लोकप्रिय प्रमुख प्रगतिशील शायर और फि़ल्म गीतकार हीर राँझा और काग़ज़ के फूल के गीतों के लिए प्रसिद्ध
हुस्न अदाओं से ही हुस्न बनता है और यही अदाएं आशिक़ के लिए जान-लेवा होती है। महबूब के देखने मुस्कुराने, चलने, बात करने और ख़ामोश रहने की अदाओं का बयान शायरी का एक अहम हिस्सा है। हाज़िर है अदा शायरी की एक हसीन झलक।
शायरों ने मय-ओ-मयकदे के मज़ामीन को बहुत तसलसुल के साथ बाँधा है। क्लासिकी शायरी का ये बहुत मर्ग़ूब मज़मून रहा है। मयकदे का ये शेरी बयान इतना दिल-चस्प और इतना रंगा-रंग है कि आप उसे पढ़ कर ही ख़ुद को मयकदे की हाव-हू में महसूस करने लगेंगे। मयकदे से जुड़े हुए और भी बहुत से पहलू हैं। ज़ाहिद, नासेह, तौबा, मस्जिद, साक़ी जैसी लफ़ज़ियात के गिर्द फैले हुए इस मौज़ू पर मुश्तमिल हमारा ये शेअरी इंतिख़ाब आपको पसंद आएगा।
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नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हमबिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आयाबात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
भले दिनों की बात हैभली सी एक शक्ल थी
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़ममक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
मौत का एक दिन मुअ'य्यन हैनींद क्यूँ रात भर नहीं आती
इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ परइन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तककौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
इक महक सम्त-ए-दिल से आई थीमैं ये समझा तिरी सवारी है
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