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तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ
हाथ में शमला हो सब अशराफ़ की दस्तार का
मार्शल-ला में मगर पहला है टुकड़ा मार का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
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हास्य
वो इक रस्सी में पूरा लाव-लश्कर बाँध लाए हैं
ये बिस्तर में हज़ारों तीर नश्तर बाँध लाए हैं