उम्मीद पर शेर
उम्मीद में जीवन की आस
हमारी इच्छा और आकांक्षा सब शामिल हैं । उम्मीद असल में जीवन को सहारा देने वाली और आगे बढ़ाने वाली अवस्था का नाम है । एक ऐसी अवस्था जो धुंद की तरह होती है उसमें कुछ साफ़ दिखाई नहीं देता लेकिन रौशनी का धोका रहता है । जिस तरह हाथ से सब कुछ निकल जाने के बाद भी एक उम्मीद हमें ज़िंदा रखती है ठीक उसी तरह प्रेमी के लिए भी उम्मीद किसी संपत्ति से कम नहीं । प्रेमी उम्मीद के सहारे ही ज़िंदा रहता है और तमाम दुखों के बावजूद उसे उम्मीद रहती है कि उसका प्रेम उसको मिल कर रहेगा । यहाँ उम्मीद से संबंधित चुनिंदा शायरी को पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि ये मुश्किल वक़्तों में हौसला देने वाली शायरी भी है ।
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
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तिरे वा'दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो
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आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ
ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते
जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे
मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ
मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं
एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा
उस के बा'द तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है
इतने मायूस तो हालात नहीं
लोग किस वास्ते घबराए हैं
कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना
वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो
किस से उम्मीद करें कोई इलाज-ए-दिल की
चारागर भी तो बहुत दर्द का मारा निकला
कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
कुछ उमीद-ए-जवाब में गुज़री
मौजों की सियासत से मायूस न हो 'फ़ानी'
गिर्दाब की हर तह में साहिल नज़र आता है
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तुम कहाँ वस्ल कहाँ वस्ल की उम्मीद कहाँ
दिल के बहकाने को इक बात बना रखी है
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने
इंक़लाब-ए-सुब्ह की कुछ कम नहीं ये भी दलील
पत्थरों को दे रहे हैं आइने खुल कर जवाब
वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा
वो व'अदा नहीं जो वफ़ा हो गया
मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
तुझ से हर दम उमीद-वारी है
फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस न कर
हासिल-ए-ग़म को ख़ुदा-रा ग़म-ए-हासिल न बना
रख न आँसू से वस्ल की उम्मीद
खारे पानी से दाल गलती नहीं
बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने की
सुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़
उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं
ज़रा सी देर को दुनिया से कट के देखते हैं
इसी उम्मीद पर तो जी रहे हैं हिज्र के मारे
कभी तो रुख़ से उट्ठेगी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
पूरी होती हैं तसव्वुर में उमीदें क्या क्या
दिल में सब कुछ है मगर पेश-ए-नज़र कुछ भी नहीं
नई नस्लों के हाथों में भी ताबिंदा रहेगा
मैं मिल जाऊँगा मिट्टी में क़लम ज़िंदा रहेगा
तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं
वर्ना उम्मीद कब बर आई है
आसार-ए-रिहाई हैं ये दिल बोल रहा है
सय्याद सितमगर मिरे पर खोल रहा है
यूँ रात गए किस को सदा देते हैं अक्सर
वो कौन हमारा था जो वापस नहीं आया
खेत जल-थल कर दिए सैलाब ने
मर गए अरमान सब दहक़ान के