सादगी पर शेर

सादगी ज़िंदगी गुज़ारने

के अमल में इख़्तियार किया जाने वाला एक रवय्या है। जिस के तहत इंसान ज़िंदगी के फ़ित्री-पन को बाक़ी रखता है और उस की ग़ैर-ज़रूरी आसाइशों, रौनक़ों और चका चौंद का शिकार नहीं होता। शेरी इज़हार में सादगी के इस तसव्वुर के अलावा उस की और भी कई जहतें हैं। ये सादगी महबूब की एक सिफ़त के तौर पर भी आई है कि महबूब बड़े से बड़ा ज़ुल्म बड़ी मासूमियत और सादगी के साथ कर जाता है और ख़ुद से भी उस का ज़रा एहसास नहीं होता है। सादगी के और भी कई पहलू है। हमारे इस इंतिख़ाब में पढ़िए।

इस सादगी पे कौन मर जाए ख़ुदा

लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

मिर्ज़ा ग़ालिब

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

अल्लामा इक़बाल

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद

जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

मिर्ज़ा ग़ालिब

तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं

हम भी सादा हैं इसी चाल में जाते हैं

अफ़ज़ल ख़ान

मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले

हँसी रही है तिरी सादगी पर

गोपाल मित्तल

वफ़ा तुझ से बेवफ़ा चाहता हूँ

मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

हसरत मोहानी

तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी ज़ेवर

तुम्हें कोई ज़रूरत ही नहीं बनने सँवरने की

असर लखनवी

अल्लाह-रे सादगी नहीं इतनी उन्हें ख़बर

मय्यत पे के पूछते हैं इन को क्या हुआ

अमीर मीनाई

बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले

कोई देखे इस वक़्त चेहरा तुम्हारा

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मअ'नी

ये तिरी सादा-दिली मार डाले मुझ को

क़तील शिफ़ाई

हाजत नहीं बनाओ की नाज़नीं तुझे

ज़ेवर है सादगी तिरे रुख़्सार के लिए

हैदर अली आतिश

यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए

बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया

फ़ानी बदायुनी

है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार

सादगी गहना है इस सिन के लिए

अमीर मीनाई

वो सादगी में भी है अजब दिलकशी लिए

इस वास्ते हम उस की तमन्ना में जी लिए

जुनैद हज़ीं लारी

ब-ज़ाहिर सादगी से मुस्कुरा कर देखने वालो

कोई कम-बख़्त ना-वाक़िफ़ अगर दीवाना हो जाए

हफ़ीज़ जालंधरी

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