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अल्लामा इक़बाल

1877 - 1938 | लाहौर, पाकिस्तान

महान उर्दू शायर, पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीतों की रचना की

महान उर्दू शायर, पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीतों की रचना की

अल्लामा इक़बाल

ग़ज़ल 115

नज़्म 434

अशआर 134

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं

तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले

ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

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तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा

तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर

तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में

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उद्धरण 10

तहज़ीब एक ताक़तवर इन्सान की फ़िक्र है।

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इन्सानों से मिलने वाले सदमात के इलावा इन्सान की याददाश्त आम तौर पर ख़राब होती है।

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इन्साफ़ एक बेकराँ ख़ज़ाना है। लेकिन हमें इसे रहम के चोर से महफ़ूज़ रखना चाहिए।

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अफ़राद और कौमें ख़त्म हो जाती हैं। मगर उनके बच्चे यानी तसव्वुरात कभी ख़त्म नहीं होते।

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यक़ीन एक बड़ी ताक़त है। जब मैं देखता हूँ कि दूसरा भी मेरे अफ़्कार का मुअय्यिद है, तो उसकी सदाक़त के बारे में मेरा एतिमाद बे-इंतिहा बढ़ जाता है।

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क़ितआ 10

रुबाई 23

क़िस्सा 13

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अल्लामा इक़बाल

Mohd. Iqbal - Zubaan-e-Ishq

मुज़फ्फर अली

ऑडियो 58

अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा

अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में

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