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फ़ानी बदायुनी

1879 - 1941 | बदायूँ, भारत

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में शामिल, शायरी के उदास रंग के लिए विख्यात।

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में शामिल, शायरी के उदास रंग के लिए विख्यात।

फ़ानी बदायुनी

ग़ज़ल 94

नज़्म 1

 

अशआर 89

हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'

ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का

सुने जाते थे तुम से मिरे दिन रात के शिकवे

कफ़न सरकाओ मेरी बे-ज़बानी देखते जाओ

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इक मुअम्मा है समझने का समझाने का

ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का

ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर

आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है

हर मुसीबत का दिया एक तबस्सुम से जवाब

इस तरह गर्दिश-ए-दौराँ को रुलाया मैं ने

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रुबाई 3

 

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चित्र शायरी 7

 

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ऑडियो 34

अब लब पे वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं है

आँख उठाई ही थी कि खाई चोट

आह अब तक तो बे-असर न हुई

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