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वादा पर शेर

वादा अगर वफ़ा हो जाएगी

तो फिर वो वादा ही कहाँ। माशूक़ हमेशा वादा ख़िलाफ़ होता है, धोके बाज़ होता है। वो आशिक़ से वादा करता है लेकिन वफ़ा नहीं करता। ये वादे ही आशिक़ के जीने का बहाना होते हैं। हमारे इस इंतिख़ाब में वादा करने और उसे तोड़ने की दिल-चस्प सूरतों से आप गुज़़रेंगे।

मैं भी हैरान हूँ 'दाग़' कि ये बात है क्या

वादा वो करते हैं आता है तबस्सुम मुझ को

दाग़ देहलवी

बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा

किसी से हम ने फिर अहद-ए-वफ़ा किया ही नहीं

इब्राहीम अश्क

आप की क़समों का और मुझ को यक़ीं

एक भी वादा कभी पूरा किया

शोख़ अमरोहवी

सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का

जब उस ने वादा किया हम ने ए'तिबार किया

जोश मलीहाबादी

वादा नहीं पयाम नहीं गुफ़्तुगू नहीं

हैरत है ख़ुदा मुझे क्यूँ इंतिज़ार है

लाला माधव राम जौहर

साफ़ इंकार अगर हो तो तसल्ली हो जाए

झूटे वादों से तिरे रंज सिवा होता है

क़ैसर हैदरी देहलवी

एक मुद्दत से क़ासिद है ख़त है पयाम

अपने वा'दे को तो कर याद मुझे याद कर

जलाल मानकपुरी

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया

दाग़ देहलवी

तुझ को देखा तिरे वादे देखे

ऊँची दीवार के लम्बे साए

बाक़ी सिद्दीक़ी

उस के वादों से इतना तो साबित हुआ उस को थोड़ा सा पास-ए-तअल्लुक़ तो है

ये अलग बात है वो है वादा-शिकन ये भी कुछ कम नहीं उस ने वादे किए

आमिर उस्मानी

वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे

तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

दाग़ देहलवी

कम-सिनी में तो हसीं अहद-ए-वफ़ा करते हैं

भूल जाते हैं मगर सब जो शबाब आता है

अनुराज़

जल कर गिरा हूँ सूखे शजर से उड़ा नहीं

मैं ने वही किया जो तक़ाज़ा वफ़ा का था

अकबर हमीदी

एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिन

अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है

कफ़ील आज़र अमरोहवी

कोई वा'दा वो कर जो पूरा हो

कोई सिक्का वो दे कि जारी हो

जमीलुद्दीन आली

किस मुँह से कह रहे हो हमें कुछ ग़रज़ नहीं

किस मुँह से तुम ने व'अदा किया था निबाह का

हफ़ीज़ जालंधरी

वो और वा'दा वस्ल का क़ासिद नहीं नहीं

सच सच बता ये लफ़्ज़ उन्ही की ज़बाँ के हैं

मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा

बाँध कर अहद-ए-वफ़ा कोई गया है मुझ से

मिरी उम्र-ए-रवाँ और ज़रा आहिस्ता

अदीब सहारनपुरी

वा'दा किया है ग़ैर से और वो भी वस्ल का

कुल्ली करो हुज़ूर हुआ है दहन ख़राब

अहमद हुसैन माइल

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि याद हो

वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि याद हो

मोमिन ख़ाँ मोमिन

सवाल-ए-वस्ल पर कुछ सोच कर उस ने कहा मुझ से

अभी वादा तो कर सकते नहीं हैं हम मगर देखो

बेख़ुद देहलवी

मान लेता हूँ तेरे वादे को

भूल जाता हूँ मैं कि तू है वही

जलील मानिकपूरी

दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से

फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया

नासिर काज़मी

तेरी मजबूरियाँ दुरुस्त मगर

तू ने वादा किया था याद तो कर

नासिर काज़मी

क़सम जब उस ने खाई हम ने ए'तिबार कर लिया

ज़रा सी देर ज़िंदगी को ख़ुश-गवार कर लिया

महशर इनायती

क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो सका

कहीं वादे भी निभाने के लिए होते हैं

इबरत मछलीशहरी

था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को

मैं भी किवाड़ खोलने फ़ौरन नहीं गया

अनवर शऊर

अब तो कर डालिए वफ़ा उस को

वो जो वादा उधार रहता है

इब्न-ए-मुफ़्ती

बाज़ वादे किए नहीं जाते

फिर भी उन को निभाया जाता है

अंजुम ख़याली

आदतन तुम ने कर दिए वादे

आदतन हम ने ए'तिबार किया

गुलज़ार

जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता

तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता

दाग़ देहलवी

तिरे वा'दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए

कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

वो उन का व'अदा वो ईफ़ा-ए-अहद का आलम

कि याद भी नहीं आता है भूलता भी नहीं

अलम मुज़फ़्फ़र नगरी

कहना क़ासिद कि उस के जीने का

वादा-ए-वस्ल पर मदार है आज

मर्दान अली खां राना

वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई

है ज़रा सी बात ख़ुश करना दिल-ए-नाशाद का

दाग़ देहलवी

वादा वो कर रहे हैं ज़रा लुत्फ़ देखिए

वादा ये कह रहा है करना वफ़ा मुझे

जलील मानिकपूरी

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद

जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

मिर्ज़ा ग़ालिब

साफ़ कह दीजिए वादा ही किया था किस ने

उज़्र क्या चाहिए झूटों के मुकरने के लिए

दाग़ देहलवी

मैं उस के वादे का अब भी यक़ीन करता हूँ

हज़ार बार जिसे आज़मा लिया मैं ने

मख़मूर सईदी

आप तो मुँह फेर कर कहते हैं आने के लिए

वस्ल का वादा ज़रा आँखें मिला कर कीजिए

लाला माधव राम जौहर

इन वफ़ादारी के वादों को इलाही क्या हुआ

वो वफ़ाएँ करने वाले बेवफ़ा क्यूँ हो गए

अख़्तर शीरानी

वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा

वो व'अदा नहीं जो वफ़ा हो गया

अल्ताफ़ हुसैन हाली

किया है आने का वादा तो उस ने

मेरे परवरदिगार आए आए

अख़्तर शीरानी

कोई वा'दा कोई यक़ीं कोई उमीद

मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था

फ़िराक़ गोरखपुरी

फिर चाहे तो आना आन बान वाले

झूटा ही वअ'दा कर ले सच्ची ज़बान वाले

आरज़ू लखनवी

और कुछ देर सितारो ठहरो

उस का व'अदा है ज़रूर आएगा

एहसान दानिश

उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती

वा'दा वफ़ा करते वा'दा तो किया होता

चराग़ हसन हसरत

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया

दाग़ देहलवी

आप ने झूटा व'अदा कर के

आज हमारी उम्र बढ़ा दी

कैफ़ भोपाली

हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा

जुड़ते हैं इसी मय से दरके हुए पैमाने

आरज़ू लखनवी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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