ग़ज़ल 24
शेर 35
तू कुछ तो मिरे ज़ब्त-ए-मोहब्बत का सिला दे
हंगामा-ए-'फ़ना दीदा-ए-पुर-नम की तरह आ
रहता है वहाँ ज़िक्र-ए-तुहूर-ओ-मय-ए-कौसर
हम आज से काबे को भी मय-ख़ाना कहेंगे
तू कुछ तो मिरे ज़ब्त-ए-मोहब्बत का सिला दे
हंगामा-ए-'फ़ना दीदा-ए-पुर-नम की तरह आ
रहता है वहाँ ज़िक्र-ए-तुहूर-ओ-मय-ए-कौसर
हम आज से काबे को भी मय-ख़ाना कहेंगे
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