Qamar Abbas Qamar's Photo'

क़मर अब्बास क़मर

1993 | दिल्ली, भारत

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइर

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइर

क़मर अब्बास क़मर

ग़ज़ल 6

नज़्म 1

 

अशआर 9

मेरे माथे पे उभर आते थे वहशत के नुक़ूश

मेरी मिट्टी किसी सहरा से उठाई गई थी

तिश्ना-लब ऐसा कि होंटों पे पड़े हैं छाले

मुतमइन ऐसा हूँ दरिया को भी हैरानी है

मजनूँ से ये कहना कि मिरे शहर में जाए

वहशत के लिए एक बयाबान अभी है

पहाड़ पेड़ नदी साथ दे रहे हैं मिरा

ये तेरी ओर मिरा आख़िरी सफ़र तो नहीं

ये एहतिजाज अजब है ख़िलाफ़-ए-तेग़-ए-सितम

ज़मीं में जज़्ब नहीं हो रहा है ख़ूँ मेरा

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