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हसरत पर शेर

दिल के खज़ाने में नाकाम

ख़्वाहिशों की कभी कमी नहीं रहती। ये हसरतें यादों की शक्ल में उदास करने के बहाने ढूंढती रहती हैं। उर्दू की क्लासिकी शायरी इन हसरतों के बयान से भरी पड़ी है। ज़िन्दगी के किसी न किसी लम्हे में शायर उस दौर को लफ़्ज़ देना नहीं भूलता जब हसरतें ही उसकी ज़िन्दगी का वाहिद सहारा रह गई हों। हसरत शायरी का यह इन्तिख़ाब पेश हैः

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

मिर्ज़ा ग़ालिब

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा

सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए

कृष्ण बिहारी नूर

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं

दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद

कैफ़ी आज़मी

आरज़ू है कि तू यहाँ आए

और फिर उम्र भर जाए कहीं

नासिर काज़मी

इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें

इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में

बहादुर शाह ज़फ़र

अब दिल की तमन्ना है तो काश यही हो

आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए

अहमद फ़राज़

कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा

हसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया

हैदर अली आतिश

आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू

इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला

सरवर आलम राज़

सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है

जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते

अहमद फ़राज़

ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते

जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे

इमरान-उल-हक़ चौहान

कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी

कैसे कहूँ किसी की तमन्ना चाहिए

शाद आरफ़ी

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी

किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें

है वस्ल से ज़ियादा मज़ा इंतिज़ार का

ताबाँ अब्दुल हई

दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह

आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के

जलील मानिकपूरी

अरमान वस्ल का मिरी नज़रों से ताड़ के

पहले ही से वो बैठ गए मुँह बिगाड़ के

लाला माधव राम जौहर

ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँ

हसरतों में शुमार होता है

अनवर शऊर

बाद मरने के भी छोड़ी रिफ़ाक़त मेरी

मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी

अमीर मीनाई

हसरतों का हो गया है इस क़दर दिल में हुजूम

साँस रस्ता ढूँढती है आने जाने के लिए

जिगर जालंधरी

ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को

वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता

इस्माइल मेरठी

एक भी ख़्वाहिश के हाथों में मेहंदी लग सकी

मेरे जज़्बों में दूल्हा बन सका अब तक कोई

इक़बाल साजिद

यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले

आज क्यूँ दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी

अमीर मीनाई

जीने वालों से कहो कोई तमन्ना ढूँडें

हम तो आसूदा-ए-मंज़िल हैं हमारा क्या है

महमूद अयाज़

देखना हसरत-ए-दीदार इसे कहते हैं

फिर गया मुँह तिरी जानिब दम-ए-मुर्दन अपना

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर

मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है

ज़ाहिद उस मिट्टी की उल्फ़त मेरी आब-ओ-गिल में है

हबीब मूसवी

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