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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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रज़ा अश्क

ग़ज़ल 5

 

नज़्म 4

 

अशआर 3

अजीब वक़्त है अब दोस्तों के चाक़ू को

मिरे क़लम की नहीं उँगलियों की हसरत है

रह-ए-हयात का मैं ऐसा इक मुसाफ़िर था

कि जैसे शहर की सड़कों से बस का रिश्ता था

दामन बचा के आइयो मेरे मज़ार तक

जान-ए-नौ-बहार उगे हैं इधर बबूल

 

पुस्तकें 2

 

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