रज़ा अश्क
ग़ज़ल 5
नज़्म 4
अशआर 3
अजीब वक़्त है अब दोस्तों के चाक़ू को
मिरे क़लम की नहीं उँगलियों की हसरत है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
रह-ए-हयात का मैं ऐसा इक मुसाफ़िर था
कि जैसे शहर की सड़कों से बस का रिश्ता था
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
दामन बचा के आइयो मेरे मज़ार तक
ऐ जान-ए-नौ-बहार उगे हैं इधर बबूल
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए