1931 - 2008 | इस्लामाबाद, पाकिस्तान
बेइंतिहा लोकप्रिय शायर/अपनी रूमानी और विरोधी -कविता के लिए प्रसिद्ध
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
Ahamad Faraz Shakhsiyat Aur Shayari
2015
Be Aawaz Gali Kuchon Mein
1982
Be Awaz Gali Kuchon Mein
2002
1984
Boodluck
2005
Dard-e-Aashob
1966
Ghalib Se Faraz Tak
Ghazal Baha Na Karun
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
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