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ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर

1795 - 1854 | लखनऊ, भारत

19 वीं सदी के शायर

19 वीं सदी के शायर

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर

ग़ज़ल 31

अशआर 68

है साया चाँदनी और चाँद मुखड़ा

दुपट्टा आसमान-ए-आसमाँ है

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देखना हसरत-ए-दीदार इसे कहते हैं

फिर गया मुँह तिरी जानिब दम-ए-मुर्दन अपना

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जिस को आते देखता हूँ परी कहता हूँ मैं

आदमी भेजा हो मेरे बुलाने के लिए

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आया है मिरे दिल का ग़ुबार आँसुओं के साथ

लो अब तो हुई मालिक-ए-ख़ुश्की-ओ-तरी आँख

कू-ए-जानाँ से जो उठता हूँ तो सो जाते हैं पाँव

दफ़अ'तन आँखों से पाँव में उतर आती है नींद

पुस्तकें 5

 

चित्र शायरी 1

 

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