तन्हाई शायरी
क्लासिकी उर्दू शाइरी में तन्हाई का संदर्भ प्रेम का पारंपरिक सौंदर्य है । क्लासिकी शाइरी का महबूब जब मिलन से इनकार करता है तो उस का आशिक़ विरह के दुख से गुज़रता है । अब केवल महबूब की याद उस के जीवन को सहारा देती है । तन्हाई और एकाकीपन के अर्थों का विस्तार उर्दू की आधुनिक शाइरी में होता है और अब इश्क़-ओ-मोहब्बत से आगे का सफ़र तय होता है । आधुनिक शाइरी में तन्हाई कभी मशीनी ज़िंदगी का रूपक बनती है तो कभी इंसान के अपने अस्तित्व और ख़ाली-पन को विषय बनाती है । यहाँ प्रस्तुत संकलन से आप को उर्दू शाइरी के ट्रेंड को समझने में मदद मिलेगी ।
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ
ख़ुद से मिलना मिरा इक शख़्स के खोने से हुआ
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ
ख़ुद से मिलना मिरा इक शख़्स के खोने से हुआ
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
my loneliness my heart and me
would be nice
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
my loneliness my heart and me
would be nice
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें
ये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें
ये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
nowadays even her thoughts do not intrude
see how forlorn and lonely is my solitude
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
nowadays even her thoughts do not intrude
see how forlorn and lonely is my solitude
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त की
इस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है
ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त की
इस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं
शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
कोई भी घर में समझता न था मिरे दुख सुख
एक अजनबी की तरह मैं ख़ुद अपने घर में था
कोई भी घर में समझता न था मिरे दुख सुख
एक अजनबी की तरह मैं ख़ुद अपने घर में था
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता