1923 - 2005 | कराची, पाकिस्तान
कराची के लोकप्रिय उर्दू शायर और प्रसिद्ध शायर निदा फ़ाज़ली के भाई
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चमन में रखते हैं काँटे भी इक मक़ाम ऐ दोस्त
फ़क़त गुलों से ही गुलशन की आबरू तो नहीं
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
जाने किस मोड़ पे ले आई हमें तेरी तलब
सर पे सूरज भी नहीं राह में साया भी नहीं
Darya Aakhir Darya Hai
1979
आसमानों से फ़रिश्ते जो उतारे जाएँ वो भी इस दौर में सच बोलें तो मारे जाएँ
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
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