अंजुम सलीमी
ग़ज़ल 33
नज़्म 25
अशआर 73
ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है
मैं ने इक शख़्स से उजरत पे मोहब्बत की है
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तेरे अंदर की उदासी के मुशाबह हूँ मैं
ख़ाल-ओ-ख़द से नहीं आवाज़ से पहचान मुझे
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वो इक दिन जाने किस को याद कर के
मिरे सीने से लग के रो पड़ा था
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