आंच पर शेर

मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा

तमाम रात तिरे पहलुओं से आँच आई

नासिर काज़मी

कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से

कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता

सलीम कौसर

आँच आती है तिरे जिस्म की उर्यानी से

पैरहन है कि सुलगती हुई शब है कोई

नासिर काज़मी

शायद अब भी कोई शरर बाक़ी हो 'ज़ेब'

दिल की राख से आँच आती है कम कम सी

ज़ेब ग़ौरी

बदन की आँच से सँवला गए हैं पैराहन

मैं फिर भी सुब्ह के चेहरे पे शाम लिखता हूँ

बेकल उत्साही

चाहत की तमन्ना से कोई आँच आई

ये आग मिरे दिल में बड़े ढब से लगी है

मुज़्तर ख़ैराबादी

दर्द की आँच बना देती है दिल को इक्सीर

दर्द से दिल है अगर दर्द नहीं दिल भी नहीं

जावेद वशिष्ट

दम-ए-विसाल तिरी आँच इस तरह आई

कि जैसे आग सुलगने लगे गुलाबों में

अनवर सदीद

ख़्वाहिशों की आँच में तपते बदन की लज़्ज़तें हैं

और वहशी रात है गुमराहियाँ सर पर उठाए

पी पी श्रीवास्तव रिंद

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

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