फ़रहत एहसास
ग़ज़ल 152
नज़्म 25
अशआर 91
क़ितआ 1
पुस्तकें 290
चित्र शायरी 21
जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज ख़ुद को बहाल करना है खोना नहीं है आज आँखों ने देखते ही उसे ग़ुल मचा दिया तय तो यही हुआ था कि रोना नहीं है आज ये रात अहल-ए-हिज्र के ख़्वाबों की रात है क़िस्सा तमाम करना है सोना नहीं है आज जो अपने घर में है वो है बाज़ार में नहीं होना किसी का शहर में होना नहीं है आज फिर तिफ़्ल-ए-दिल है दौलत-ए-दुनिया पे गिर्या-बार और मेरे पास कोई खिलौना नहीं है आज
अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है दुनिया मिरे ज़ख़्मों की तलबगार बहुत है अब टूट रहा है मिरी हस्ती का तसव्वुर इस वक़्त मुझे तुझ से सरोकार बहुत है मिट्टी की ये दीवार कहीं टूट न जाए रोको कि मिरे ख़ून की रफ़्तार बहुत है हर साँस उखड़ जाने की कोशिश में परेशाँ सीने में कोई है जो गिरफ़्तार बहुत है पानी से उलझते हुए इंसान का ये शोर उस पार भी होगा मगर इस पार बहुत है
ईद ख़ुशियों का दिन सही लेकिन इक उदासी भी साथ लाती है ज़ख़्म उभरते हैं जाने कब कब के जाने किस किस की याद आती है
राह की कुछ तो रुकावट यार कम कर दीजिए आप अपने घर की इक दीवार कम कर दीजिए आप का आशिक़ बहुत कमज़ोर दिल का है हुज़ूर देखिए ये शिद्दत-ए-इन्कार कम कर दीजिए मैं भी होंटों से कहूँगा कम करें जलने का शौक़ आप अगर सरगर्मी-ए-रुख़्सार कम कर दीजिए एक तो शर्म आप की और उस पे तकिया दरमियाँ दोनों दीवारों में इक दीवार कम कर दीजिए आप तो बस खोलिए लब बोसा देने के लिए बोसा देने पर जो है तकरार कम कर दीजिए रात के पहलू में फैला दीजिए ज़ुल्फ़-ए-दराज़ यूँही कुछ तूल-ए-शब-ए-बीमार कम कर दीजिए या इधर कुछ तेज़ कर दीजे घरों की रौशनी या उधर कुछ रौनक़-ए-बाज़ार कम कर दीजिए वो जो पीछे रह गए हैं तेज़-रफ़्तारी करें आप आगे हैं तो कुछ रफ़्तार कम कर दीजिए हाथ में है आप के तलवार कीजे क़त्ल-ए-आम हाँ मगर तलवार की कुछ धार कम कर दीजिए बस मोहब्बत बस मोहब्बत बस मोहब्बत जान-ए-मन बाक़ी सब जज़्बात का इज़हार कम कर दीजिए शाइ'री तन्हाई की रौनक़ है महफ़िल की नहीं 'फ़रहत-एहसास' अपना ये दरबार कम कर दीजिए