सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल 61
नज़्म 12
अशआर 46
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
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दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
इक आईना था टूट गया देख-भाल में
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तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी
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लोरी 3
पुस्तकें 54
चित्र शायरी 3
वीडियो 10
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