दर्द शायरी
दर्द और तकलीफ़ ज़िन्दगी ही नहीं शायरी का भी बहुत अहम हिस्सा है। अपनों से मिलने वाले दर्द तो शायरों ने ता-उम्र कलेजे से लगाए रखने की जैसे क़सम खा रखी है यहाँ तक कि कई तो इस दर्द का इलाज कराने तक को तैयार नहीं। दर्द की कायनात इतनी फैली हुई है कि उर्दू शायरी अपनी इब्तिदा से लेकर आज तक इसके बयान में मसरूफ़ है। दर्द शायरी की इसी बे-दर्द दुनिया की सैर करने चलते हैं रेख़्ता के इस इन्तिख़ाब के साथः
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
Love your sad conclusion makes me weep
Wonder why your mention makes me weep
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया
my being did, from love's domain, the joy of life procure
obtained such cure for life's travails, which itself had no cure
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
may my friends too receive this wealth of pain
I cannot envisage my solitary gain
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
My companion, my intimate, be not a friend and yet betray
The pain of love is fatal now, for my life please do not pray
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
आज तो दिल के दर्द पर हँस कर
दर्द का दिल दुखा दिया मैं ने
इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही
दर्द कम हो या ज़ियादा हो मगर हो तो सही
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
Whenever talk of happiness I hear
My failure and frustration makes me weep
क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
आदत के ब'अद दर्द भी देने लगा मज़ा
हँस हँस के आह आह किए जा रहा हूँ मैं
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
ग़म में कुछ ग़म का मशग़ला कीजे
दर्द की दर्द से दवा कीजे
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागर
ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मेरा दर्द और बढ़ा न दे
Leave me to my present state, I do not trust your medicine
Your mercy minor though may be,might increase my pain today
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
सो जाए भी तो पहर दो पहर को जाता है
दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया
मिरे लबों का तबस्सुम तो सब ने देख लिया
जो दिल पे बीत रही है वो कोई क्या जाने
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है
हम आह तो करते हैं फ़रियाद नहीं करते
हाल तुम सुन लो मिरा देख लो सूरत मेरी
दर्द वो चीज़ नहीं है कि दिखाए कोई
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है
दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए
रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा
अब तुझे दर्द की दौलत नहीं मिलने वाली
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले
मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे
दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए
दिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है
यूँ ही छन से बोल उठना तो शीशे का दस्तूर नहीं
दर्द ओ ग़म दिल की तबीअत बन गए
अब यहाँ आराम ही आराम है
the heart is accustomed to sorrow and pain
in lasting comfort now I can remain
तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी
तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे
अब मिरी बात जो माने तो न ले इश्क़ का नाम
तू ने दुख ऐ दिल-ए-नाकाम बहुत सा पाया
दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी
मौत आएगी तो ऐ हमदम शिफ़ा हो जाएगी
कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से
तुम्हारा दर्द कई काम ले गया मुझ से
हिचकियाँ रात दर्द तन्हाई
आ भी जाओ तसल्लियाँ दे दो
सुन चुके जब हाल मेरा ले के अंगड़ाई कहा
किस ग़ज़ब का दर्द ज़ालिम तेरे अफ़्साने में था
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
सोचता हूँ कि कहूँ तुझ से मगर जाने दे
किस से जा कर माँगिये दर्द-ए-मोहब्बत की दवा
चारा-गर अब ख़ुद ही बेचारे नज़र आने लगे
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी
दर्द हो दुख हो तो दवा कीजे
फट पड़े आसमाँ तो क्या कीजे
पहलू में मेरे दिल को न ऐ दर्द कर तलाश
मुद्दत हुई ग़रीब वतन से निकल गया
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो
इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो
ज़ख़्म ही तेरा मुक़द्दर हैं दिल तुझ को कौन सँभालेगा
ऐ मेरे बचपन के साथी मेरे साथ ही मर जाना
करता मैं दर्दमंद तबीबों से क्या रुजूअ
जिस ने दिया था दर्द बड़ा वो हकीम था
for my pain how could I seek, from doctors remedy
the one who caused this ache, a healer great was he