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रद करें डाउनलोड शेर

दर्द पर शेर

दर्द और तकलीफ़ ज़िन्दगी

ही नहीं शायरी का भी बहुत अहम हिस्सा है। अपनों से मिलने वाले दर्द तो शायरों ने ता-उम्र कलेजे से लगाए रखने की जैसे क़सम खा रखी है यहाँ तक कि कई तो इस दर्द का इलाज कराने तक को तैयार नहीं। दर्द की कायनात इतनी फैली हुई है कि उर्दू शायरी अपनी इब्तिदा से लेकर आज तक इसके बयान में मसरूफ़ है। दर्द शायरी की इसी बे-दर्द दुनिया की सैर करने चलते हैं रेख़्ता के इस इन्तिख़ाब के साथः

तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए

तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए

असर सहबाई

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो

जानता कौन है पराई चोट

फ़ानी बदायुनी

हाथ रख रख के वो सीने पे किसी का कहना

दिल से दर्द उठता है पहले कि जिगर से पहले

हफ़ीज़ जालंधरी

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से इंसाँ आश्ना होता

कुछ मरने का ग़म होता जीने का मज़ा होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

कभी सहर तो कभी शाम ले गया मुझ से

तुम्हारा दर्द कई काम ले गया मुझ से

फ़रहत अब्बास शाह

तल्ख़ियाँ इस में बहुत कुछ हैं मज़ा कुछ भी नहीं

ज़िंदगी दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं

कलीम आजिज़

अब मिरा दर्द मिरी जान हुआ जाता है

मिरे चारागरो अब मुझे अच्छा करो

शहज़ाद अहमद

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा

दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा

मीना कुमारी नाज़

रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा

अब तुझे दर्द की दौलत नहीं मिलने वाली

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इक ये भी तो अंदाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है

चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़

मिरे लबों का तबस्सुम तो सब ने देख लिया

जो दिल पे बीत रही है वो कोई क्या जाने

इक़बाल सफ़ी पूरी

इश्क़ उस दर्द का नहीं क़ाइल

जो मुसीबत की इंतिहा हुआ

जोश मलसियानी

ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

दर्द में ढल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

पीरज़ादा क़ासीम

इस में कोई मिरा शरीक नहीं

मेरा दुख आह सिर्फ़ मेरा है

अख़्तर अंसारी

दर्द मेराज को पहुँचता है

जब कोई तर्जुमाँ नहीं मिलता

अर्श मलसियानी

दीदा दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की

वो तो दर्द का बानी ठहरा वो क्या दर्द बटाएगा

इब्न-ए-इंशा

किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़

अब तो वो ध्यान से उतर भी गए

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब के सफ़र में दर्द के पहलू अजीब हैं

जो लोग हम-ख़याल थे हम-सफ़र हुए

खलील तनवीर

आन के इस बीमार को देखे तुझ को भी तौफ़ीक़ हुई

लब पर उस के नाम था तेरा जब भी दर्द शदीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं

अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते

बशीर बद्र

शब के सन्नाटे में ये किस का लहू गाता है

सरहद-ए-दर्द से ये किस की सदा आती है

अली सरदार जाफ़री

दर्द बिकता नहीं बाज़ार-ए-जहाँ में वर्ना

जान तक बेच के लेता मैं तिरे दिल के लिए

जलील मानिकपूरी

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो

इब्न-ए-इंशा

दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी

इंतिहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया

फ़ानी बदायुनी

कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है

हम आह तो करते हैं फ़रियाद नहीं करते

फ़ना निज़ामी कानपुरी

दर्द तू मेरे पास से मरते तलक जाइयो

ताक़त-ए-सब्र हो हो ताब-ओ-क़रार हो हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

उल्फ़त के बदले उन से मिला दर्द-ए-ला-इलाज

इतना बढ़े है दर्द मैं जितनी दवा करूँ

असर अकबराबादी

दर्द-ए-दिल पहले तो वो सुनते थे

अब ये कहते हैं ज़रा आवाज़ से

जलील मानिकपूरी

'फ़िराक़' दौड़ गई रूह सी ज़माने में

कहाँ का दर्द भरा था मिरे फ़साने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी

तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दुख दे या रुस्वाई दे

ग़म को मिरे गहराई दे

सलीम अहमद

नावक-ए-नाज़ से मुश्किल है बचाना दिल का

दर्द उठ उठ के बताता है ठिकाना दिल का

अमीर मीनाई

रंज-ओ-ग़म दर्द-ओ-अलम ज़िल्लत-ओ-रुसवाई है

हम ने ये दिल के लगाने की सज़ा पाई है

फ़िदा कड़वी

दिल का सारा दर्द सिमट आया है मेरी पलकों में

कितने ताज-महल डूबेंगे पानी की इन बूँदों में

वहीद अर्शी

दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है

दिल से अब दर्द की रुख़्सत नहीं देखी जाती

अख़्तर सईद ख़ान

दर्द-ए-दिल से उठा नहीं जाता

जब से वो हाथ रख गए दिल पर

जलील मानिकपूरी

हाथ फैलाऊँ मैं ईसा-नफ़सों के आगे

दर्द पहलू में मिरे है मगर इतना भी नहीं

इक़बाल अज़ीम

मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा दे

मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ दे

शकील बदायूनी

ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे

सो जाए भी तो पहर दो पहर को जाता है

अहमद फ़राज़

पहलू में मेरे दिल को दर्द कर तलाश

मुद्दत हुई ग़रीब वतन से निकल गया

अमीर मीनाई

दिल मिरा दर्द के सिवा क्या है

इब्तिदा ये तो इंतिहा क्या है

सोज़ होशियारपूरी

मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे

दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें

कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

जाँ निसार अख़्तर

ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को

सोचता हूँ कि कहूँ तुझ से मगर जाने दे

नज़ीर बाक़री

एक दो ज़ख़्म नहीं जिस्म है सारा छलनी

दर्द बे-चारा परेशाँ है कहाँ से निकले

सय्यद हामिद

दर्द बढ़ कर दवा हो जाए

ज़िंदगी बे-मज़ा हो जाए

अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी

क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है

अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है

हफ़ीज़ जालंधरी

मरज़-ए-इश्क़ को शिफ़ा समझे

दर्द को दर्द की दवा समझे

जिगर बरेलवी

बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है

वो दर्द दिल में दे कि मसीहा कहें जिसे

आसी ग़ाज़ीपुरी

एक दिल है कि नहीं दर्द से दम भर ख़ाली

वर्ना क्या क्या नज़र आए भरे घर ख़ाली

जलील मानिकपूरी

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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