ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल 7
नज़्म 2
अशआर 7
आह! कल तक वो नवाज़िश! आज इतनी बे-रुख़ी
कुछ तो निस्बत चाहिए अंजाम को आग़ाज़ से
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती
हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
नाज़ ने फिर किया आग़ाज़ वो अंदाज़-ए-नियाज़
हुस्न-ए-जाँ-सोज़ को फिर सोज़ का दावा है वही
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़
गुल-ए-शादाब वही बुलबुल-ए-शैदा है वही
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए