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ग़ुलाम भीक नैरंग

1876 - 1952 | लाहौर, पाकिस्तान

ग़ुलाम भीक नैरंग

ग़ज़ल 7

नज़्म 2

 

अशआर 7

आह! कल तक वो नवाज़िश! आज इतनी बे-रुख़ी

कुछ तो निस्बत चाहिए अंजाम को आग़ाज़ से

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती

दर्द उल्फ़त का हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा

आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी

नाज़ ने फिर किया आग़ाज़ वो अंदाज़-ए-नियाज़

हुस्न-ए-जाँ-सोज़ को फिर सोज़ का दावा है वही

महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़

गुल-ए-शादाब वही बुलबुल-ए-शैदा है वही

पुस्तकें 5

 

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