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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मरग़ूब अली

ग़ज़ल 14

अशआर 11

मैं उस को भूल जाऊँ रात ये माँगी दुआ मैं ने

करूँ क्या मैं अगर मेरी दुआ वापस पलट आए

रात पड़ते ही हर इक रोज़ उभर आती है

किस के रोने की सदा ज़ात के सन्नाटे में

वस्ल का गुल सही हिज्र का काँटा ही सही

कुछ कुछ तो मिरी वहशत का सिला दे मुझ को

सब मुमकिन था प्यार मोहब्बत हँसते चेहरे ख़्वाब-नगर

लेकिन एक अना ने कितने भोले दिन बर्बाद किए

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हक़ीक़ी चेहरा कहीं पर हमें नहीं मिलता

सभी ने चेहरे पे डाले हैं मस्लहत के नक़ाब

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गीत 1

 

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