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अंगड़ाई पर शेर

शायर और रचनाकारों की

कल्पना-शक्ति ने बदन की साधारण और सामान्य क्रियाओं को भी हुस्न के दिलचस्प आख्यान में रूपांतरित कर दिया है । असल में अंगड़ाई बदन की साधारण और सामान्य क्रियाओं में से एक है लेकिन शायरों ने अलग से इसके सौन्दर्यशास्त्र की पूरी किताब लिख दी है और अपने ज़हन की ज़रख़ेज़ी और उर्वरता का अदभूत एवं अद्भुत सबूत दिया है । अंगड़ाई के संदर्भ में उर्दू शायरी के कुछ हिस्से तो ऐसे हैं कि मानोअंगड़ाई ही हुस्न की पूरी तस्वीर हो । अपने महबूब की अंगड़ाई का नज़ारा और उसकी तस्वीर बनाती हुई चुनिंदा शायरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।

अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है

जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की

परवीन शाकिर

अंगड़ाई भी वो लेने पाए उठा के हाथ

देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ

निज़ाम रामपुरी

इलाही क्या इलाक़ा है वो जब लेता है अंगड़ाई

मिरे सीने में सब ज़ख़्मों के टाँके टूट जाते हैं

जुरअत क़लंदर बख़्श

तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो

जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना

शकील बदायूनी

अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न

भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का

मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी

दोनों हाथों से लूटती है हमें

कितनी ज़ालिम है तेरी अंगड़ाई

जिगर मुरादाबादी

कौन अंगड़ाई ले रहा है 'अदम'

दो जहाँ लड़खड़ाए जाते हैं

अब्दुल हमीद अदम

कौन ये ले रहा है अंगड़ाई

आसमानों को नींद आती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिल का क्या हाल कहूँ सुब्ह को जब उस बुत ने

ले के अंगड़ाई कहा नाज़ से हम जाते हैं

दाग़ देहलवी

लुट गए एक ही अंगड़ाई में ऐसा भी हुआ

उम्र-भर फिरते रहे बन के जो होशियार बहुत

क़ैस रामपुरी

दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया

अंगड़ाई उस ने नश्शे में ली जब उठा के हाथ

इमाम बख़्श नासिख़

शाख़-ए-गुल झूम के गुलज़ार में सीधी जो हुई

फिर गया आँख में नक़्शा तिरी अंगड़ाई का

आग़ा हज्जू शरफ़

क्या क्या दिल-ए-मुज़्तर के अरमान मचलते हैं

तस्वीर-ए-क़यामत है ज़ालिम तिरी अंगड़ाई

राम कृष्ण मुज़्तर

क्यूँ चमक उठती है बिजली बार बार

सितमगर ले अंगड़ाई बहुत

साहिल अहमद

पयाम-ए-ज़ेर-ए-लब ऐसा कि कुछ सुना गया

इशारा पाते ही अंगड़ाई ली रहा गया

यगाना चंगेज़ी

उन से छींके से कोई कोई चीज़ उतरवाई है

काम का काम है अंगड़ाई की अंगड़ाई है

बूम मेरठी

अब तो उस के बारे में तुम जो चाहो वो कह डालो

वो अंगड़ाई मेरे कमरे तक तो बड़ी रूहानी थी

जौन एलिया

हद-ए-तकमील को पहुँची तिरी रानाई-ए-हुस्न

जो कसर थी वो मिटा दी तिरी अंगड़ाई ने

आनंद नारायण मुल्ला

शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का

मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है

जौन एलिया

सुन चुके जब हाल मेरा ले के अंगड़ाई कहा

किस ग़ज़ब का दर्द ज़ालिम तेरे अफ़्साने में था

शाद अज़ीमाबादी

बे-साख़्ता बिखर गई जल्वों की काएनात

आईना टूट कर तिरी अंगड़ाई बन गया

साग़र सिद्दीक़ी
बोलिए