क़ैस रामपुरी
ग़ज़ल 4
अशआर 1
लुट गए एक ही अंगड़ाई में ऐसा भी हुआ
उम्र-भर फिरते रहे बन के जो होशियार बहुत
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere