aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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रिश्ता पर शेर

समाज के दो लोगों के

बीच का तअल्लुक हो या इन्सान और ख़ुदा के दर्मियान रिश्तों की एक डोर हर किसी को बाँधे हुए है। कभी-कभी कुछ रिश्ते ख़ुद-रौ सदाबहार पौधे की तरह हमारे दिलों में उग आते हैं और कभी ता-उम्र इनकी देख भाल करने के बावजूद मुरझा जाते हैं। तअल्लुक़ात की ऐसी ही उतार-चढ़व से भरी कहानियों के कुछ अक्स अशआर की शक्ल में पेश हैं तअल्लुक़ शायरी की मिसाल के तौर परः

दुश्मनी लाख सही ख़त्म कीजे रिश्ता

दिल मिले या मिले हाथ मिलाते रहिए

निदा फ़ाज़ली

दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था

तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था

अज़हर फ़राग़

मिरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता

किसी ने तोड़ दिया ए'तिबार टूट गया

अख़्तर नज़्मी

मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक़ है रज़ा तेरी

मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता

अहमद नदीम क़ासमी

बोसे बीवी के हँसी बच्चों की आँखें माँ की

क़ैद-ख़ाने में गिरफ़्तार समझिए हम को

फ़ुज़ैल जाफ़री

चलो कहीं पे तअल्लुक़ की कोई शक्ल तो हो

किसी के दिल में किसी की कमी ग़नीमत है

आफ़ताब हुसैन

सरहदें रोक पाएँगी कभी रिश्तों को

ख़ुश्बूओं पर कभी कोई भी पहरा निकला

अज्ञात

तअल्लुक़ किर्चियों की शक्ल में बिखरा तो है फिर भी

शिकस्ता आईनों को जोड़ देना चाहते हैं हम

ऐतबार साजिद

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