रिश्ता पर कहानियाँ

समाज के दो लोगों के

बीच का तअल्लुक हो या इन्सान और ख़ुदा के दर्मियान रिश्तों की एक डोर हर किसी को बाँधे हुए है। कभी-कभी कुछ रिश्ते ख़ुद-रौ सदाबहार पौधे की तरह हमारे दिलों में उग आते हैं और कभी ता-उम्र इनकी देख भाल करने के बावजूद मुरझा जाते हैं। तअल्लुक़ात की ऐसी ही उतार-चढ़व से भरी कहानियों के कुछ अक्स अशआर की शक्ल में पेश हैं तअल्लुक़ शायरी की मिसाल के तौर परः

औलाद

ये औलाद न होने के दुख में पागल हो गई एक औरत की कहानी है। ज़ुबैदा की शादी के बाद ही उसके बाप की मौत हो गई तो वह अपनी माँ को अपने घर ले आई। माँ-बेटी एक साथ रहने लगीं तो माँ को इस बात की चिंता हुई कि उसकी बेटी को अभी तक बच्चा क्यों नहीं हुआ। बच्चे के लिए माँ ने बेटी का हर तरह का इलाज कराया, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। माँ दिन-रात उसे औलाद न होने के ताने देती रहती है तो उसका दिमाग़़ चल जाता है और हर तरफ़ उसे बच्चे ही नज़र आने लगते हैं। उसके इस पागलपन को देखकर उसका शौहर एक नवजात शिशु को उसकी गोद में लाकर डाल देता है। जब उसके लिए उसकी छातियों से दूध नहीं उतरता है तो वह उस्तरे से अपनी छातियों को काटती जिससे उसकी मौत हो जाती है।

सआदत हसन मंटो

नंगी आवाज़ें

"इस कहानी में शहरी ज़िंदगी के मसाइल को उजागर किया गया है। भोलू एक मज़दूर पेशा आदमी है। जिस बिल्डिंग में वो रहता है उसमें सारे लोग रात में गर्मी से बचने के लिए छत पर टाट के पर्दे लगा कर सोते हैं। उन पर्दों के पीछे से आने वाली मुख्तलिफ़ आवाज़ें उसके अंदर जिन्सी हैजान पैदा करती हैं और वो शादी कर लेता है। लेकिन शादी की पहली ही रात उसे महसूस होता है कि पूरी बिल्डिंग के लोग उसे देख रहे हैं। इसी उधेड़ बुन में वो बीवी की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता और जब बीवी की ये बात उस तक पहुँचती है कि उसके अंदर कुछ कमी है तो उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और फिर वो जहाँ टाट का पर्दा देखता है उखाड़ना शुरू कर देता है।"

सआदत हसन मंटो

असली जिन

लेस्बियन संबंधों पर आधारित कहानी। फर्ख़ंदा अपने माँ-बाप की इकलौती बेटी थी। बचपन में ही उसके बाप का देहांत हो गया था तो वह अकेले अपनी माँ के साथ रहने लगी थी। जवानी का सफ़र उसने तन्हा ही गुज़ार दिया। जब वह अट्ठारह साल की हुई तो उसकी मुलाक़ात नसीमा से हुई। नसीमा एक पंजाबी लड़की थी, जो हाल ही में पड़ोस में रहने आई थी। नसीमा एक लंबी-चौड़ी मर्दों के स्वभाव वाली महिला थी, जो फर्ख़ंदा को भा गई थी। जब फर्ख़ंदा की माँ ने उसका नसीमा से मिलना बंद कर दिया तो वह आधी पागल हो गई। लोगों ने कहा कि उस पर जिन्न है, पर छत पर जब एक दिन उसकी मुलाक़ात नसीमा के छोटे भाई से हुई तो उसके सभी जिन्न भाग गए।

सआदत हसन मंटो

तरक़्क़ी पसंद

तंज़-ओ-मिज़ाह के अंदाज़ में लिखी गई यह कहानी तरक्क़ी-पसंद अफ़साना-निगारों पर भी चोट करता है। जोगिंदर सिंह एक तरक्क़ी-पसंद कहानी-कार है जिसके यहाँ हरेंद्र सिंह आकर डेरा डाल देता है और निरंतर अपनी कहानियाँ सुना कर बोर करता रहता है। एक दिन अचानक जोगिंदर सिंह को एहसास होता है कि वो अपनी बीवी की हक़-तल्फ़ी कर रहा है। इसी ख़्याल से वो हरेंद्र से बाहर जाने का बहाना करके बीवी से रात बारह बजे आने का वादा करता है। लेकिन जब रात में जोगिंदर अपने घर के दरवाज़े पर दस्तक देता है तो उसकी बीवी के बजाय हरेंद्र दरवाज़ा खोलता है और कहता है जल्दी आ गए, आओ, अभी एक कहानी मुकम्मल की है, इसे सुनो।

सआदत हसन मंटो

बिजली पहलवान

अमृतसर के अपने समय के एक नामी पहलवान की कहानी है। बिजली पहलवान की शोहरत सारे शहर में थी। हालाँकि देखने में वह मोटा और थुलथुल व्यक्ति था जो हर तरह के दो नंबरी काम किया करता था। फिर भी पुलिस उसे पकड़ नहीं पाती थी। एक बार उसे सोलह-सत्रह साल की एक लड़की से मोहब्बत हो गई और उसने उससे शादी कर ली। शादी के छह महीने बीत जाने के बाद भी पहलवान ने उसे हाथ तक नहीं लगाया। एक दिन जब वह अपनी पत्नी के लिए तोहफ़े लेकर घर पहुँचा तो उसकी नई-नवेली पत्नी उसके बड़े बेटे के साथ एक कमरे में बंद खिलखिला रही थी। इससे क्रोधित हो कर बिजली पहलवान ने उसे हमेशा के लिए अपने बेटे के हवाले कर दिया।

सआदत हसन मंटो

शाह दूले का चूहा

मज़हब के नाम पर गोरख धंधा करने वालों की कहानी है। शाह दूले के मज़ार के बारे में यह अक़ीदा राइज कर दिया गया था कि यहाँ मन्नत मानने के बाद अगर बच्चा होता है तो पहला बच्चा शाह दूले का चूहा है और उस बच्चे को मज़ार पर छोड़ना ज़रूरी है। सलीमा को अपना पहला बच्चा मुजीब इसी अक़ीदे से मज़ार पर छोड़ना पड़ा, लेकिन वह उसका ग़म अपने सीने से लगाये रही। एक मुद्दत के बाद जब मुजीब उसके दरवाज़े पर शाह दूल्हे का चूहा बन कर आता है तो सलीमा उसे तुरंत पहचान लेती है और तमाशा दिखाने वाले से पाँच सौ के बदले उसे ले लेती है, लेकिन जब वह पैसे देकर वापस अंदर आती है तो मुजीब ग़ायब हो चुका होता है।

सआदत हसन मंटो

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