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ग़ज़ल 8
शेर 4
वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता
सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं
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टैग : धोखा
अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला
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- ग़ज़ल देखिए
दोहा 9
भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए
जब मेरी चिंता बढ़े माँ सपने में आए
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टैग : माँ
छेड़-छाड़ करता रहा मुझ से बहुत नसीब
मैं जीता तरकीब से हारा वही ग़रीब
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टैग : क़िस्मत