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ग़ज़ल
मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा
तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
बशीर बद्र
नज़्म
हसन कूज़ा-गर (1)
जहाँ-ज़ाद नीचे गली में तिरे दर के आगे
ये मैं सोख़्ता-सर हसन-कूज़ा-गर हूँ!