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नज़्म
शिकवा
साज़ ख़ामोश हैं फ़रियाद से मामूर हैं हम
नाला आता है अगर लब पे तो मा'ज़ूर हैं हम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
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ग़ज़ल
बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ
न ख़तर रहा न हज़र रहा मगर एक बे-ख़तरी रही