वज़ीर अली सबा लखनवी की टॉप 20 शायरी
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साकिन-ए-दैर हूँ इक बुत का हूँ बंदा ब-ख़ुदा
ख़ुद वो काफ़िर हैं जो कहते हैं मुसलमाँ मुझ को
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रोज़ ओ शब फ़ुर्क़त-ए-जानाँ में बसर की हम ने
तुझ से कुछ काम न ऐ गर्दिश-ए-दौराँ निकला
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कलेजा काँपता है देख कर इस सर्द-मेहरी को
तुम्हारे घर में क्या आए कि हम कश्मीर में आए
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तुम्हारी ज़ुल्फ़ न गिर्दाब-ए-नाफ़ तक पहुँची
हुई न चश्मा-ए-हैवाँ से फ़ैज़-याब घटा
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टैग : वफ़ा
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