याद पर शेर
‘याद’ को उर्दू शाइरी
में एक विषय के तौर पर ख़ास अहमिय हासिल है । इस की वजह ये है कि नॉस्टेलजिया और उस से पैदा होने वाली कैफ़ीयत, शाइरों को ज़्यादा रचनात्मकता प्रदान करती है । सिर्फ़ इश्क़-ओ-आशिक़ी में ही ‘याद’ के कई रंग मिल जाते हैं । गुज़रे हुए लम्हों की कसक हो या तल्ख़ी या कोई ख़ुश-गवार लम्हा सब उर्दू शाइरी में जीवन के रंगों को पेश करते हैं । इस तरह की कैफ़ियतों से सरशार उर्दू शाइरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
ख़बर देती है याद करता है कोई
जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते
फिर किसी की बज़्म का आया ख़याल
फिर धुआँ उट्ठा दिल-ए-नाकाम से
ये सच है कि औरों ही को तुम याद करोगे
मेरे दिल-ए-नाशाद को कब शाद करोगे
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
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नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक
मुझ को अपना घर बहुत याद आ रहा है
फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
फिर कलेजा थाम कर हम रह गए
जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें
दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूँ
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
'अमीर' अब हिचकियाँ आने लगी हैं
कहीं मैं याद फ़रमाया गया हूँ
इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे
किसी मा'ज़ूर को देखोगे तो याद आऊँगा
तिरी याद में थी वो बे-ख़ुदी कि न फ़िक्र-ए-नामा-बरी रही
मिरी वो निगारिश-ए-शौक़ भी कहीं ताक़ ही पे धरी रही
उन दिनों घर से अजब रिश्ता था
सारे दरवाज़े गले लगते थे
दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता
शायद ही कभी मैं ने तुझे याद किया हो
आज क्या लौटते लम्हात मयस्सर आए
याद तुम अपनी इनायात से बढ़ कर आए
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
किसी जानिब से कोई मह-जबीं आने ही वाला है
मुझे याद आ रही है आज मथुरा और काशी की
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
सारी दुनिया के ख़यालात थे दिल में लेकिन
जब से है याद तिरी कुछ भी नहीं याद मुझे
हमें याद रखना हमें याद करना
अगर कोई ताज़ा सितम याद आए
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ
दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई
हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं
दिलों को दर्द से आबाद रखना चाहते हैं
आई जब उन की याद तो आती चली गई
हर नक़्श-ए-मा-सिवा को मिटाती चली गई
तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो
भुलाई नहीं जा सकेंगी ये बातें
तुम्हें याद आएँगे हम याद रखना
ऐ मुज़फ़्फ़र किस लिए भोपाल याद आने लगा
क्या समझते थे कि दिल्ली में न होगा आसमाँ
कहीं ये तर्क-ए-मोहब्बत की इब्तिदा तो नहीं
वो मुझ को याद कभी इस क़दर नहीं आए
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह
हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें
हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं
जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
ये याद रहे हम को बहुत याद करोगे
यूँ जी बहल गया है तिरी याद से मगर
तेरा ख़याल तेरे बराबर न हो सका
'अजमल'-सिराज हम उसे भूल हुए तो हैं
क्या जाने क्या करेंगे अगर याद आ गया
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
तुम याद कर रहे हो कि याद आ रहे हो तुम
जिस में हो याद भी तिरी शामिल
हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए
न हालत मेरी कुछ कहना न मतलब नामा-बर कहना
जो मुमकिन हो तो ये कहना तुम्हारी याद आती है
याद-ए-माज़ी की पुर-असरार हसीं गलियों में
मेरे हमराह अभी घूम रहा है कोई
कर कुछ ऐसा कि तुझे याद रखूँ
भूल जाने का तक़ाज़ा ही सही
याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा
तआक़ुब में है मेरे याद किस की
मैं किस को भूल जाना चाहता हूँ
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते
गुज़र जाएँगे जब दिन गुज़रे आलम याद आएँगे
हमें तुम याद आओगे तुम्हें हम याद आएँगे
बसी है सूखे गुलाबों की बात साँसों में
कोई ख़याल किसी याद के हिसार में है
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
आ कि आने के हैं हज़ार तरीक़
तुम्हारी याद मेरा दिल ये दोनों चलते पुर्ज़े हैं
जो इन में से कोई मिटता मुझे पहले मिटा जाता
रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया
तेरे जल्वों का असर याद आया
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
रुलाएगी मिरी याद उन को मुद्दतों साहब
करेंगे बज़्म में महसूस जब कमी मेरी