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याद पर शेर

‘याद’ को उर्दू शाइरी

में एक विषय के तौर पर ख़ास अहमिय हासिल है । इस की वजह ये है कि नॉस्टेलजिया और उस से पैदा होने वाली कैफ़ीयत, शाइरों को ज़्यादा रचनात्मकता प्रदान करती है । सिर्फ़ इश्क़-ओ-आशिक़ी में ही ‘याद’ के कई रंग मिल जाते हैं । गुज़रे हुए लम्हों की कसक हो या तल्ख़ी या कोई ख़ुश-गवार लम्हा सब उर्दू शाइरी में जीवन के रंगों को पेश करते हैं । इस तरह की कैफ़ियतों से सरशार उर्दू शाइरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।

ख़बर देती है याद करता है कोई

जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते

अफ़सर इलाहाबादी

फिर किसी की बज़्म का आया ख़याल

फिर धुआँ उट्ठा दिल-ए-नाकाम से

महेश चंद्र नक़्श

ये सच है कि औरों ही को तुम याद करोगे

मेरे दिल-ए-नाशाद को कब शाद करोगे

जोशिश अज़ीमाबादी

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई हमें

और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक

मुझ को अपना घर बहुत याद रहा है

अब्दुल अहद साज़

फिर किसी की याद ने तड़पा दिया

फिर कलेजा थाम कर हम रह गए

फ़ानी बदायुनी

जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें

दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूँ

हबीब जालिब

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

'अमीर' अब हिचकियाँ आने लगी हैं

कहीं मैं याद फ़रमाया गया हूँ

अमीर मीनाई

इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे

किसी मा'ज़ूर को देखोगे तो याद आऊँगा

वसी शाह

तिरी याद में थी वो बे-ख़ुदी कि फ़िक्र-ए-नामा-बरी रही

मिरी वो निगारिश-ए-शौक़ भी कहीं ताक़ ही पे धरी रही

मोहम्मद ज़ुबैर रूही इलाहाबादी

उन दिनों घर से अजब रिश्ता था

सारे दरवाज़े गले लगते थे

मोहम्मद अल्वी

दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता

शायद ही कभी मैं ने तुझे याद किया हो

ज़ेब ग़ौरी

आज क्या लौटते लम्हात मयस्सर आए

याद तुम अपनी इनायात से बढ़ कर आए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

बशीर बद्र

किसी जानिब से कोई मह-जबीं आने ही वाला है

मुझे याद रही है आज मथुरा और काशी की

अब्दुल हमीद अदम

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने दिया

जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया

जोश मलीहाबादी

सारी दुनिया के ख़यालात थे दिल में लेकिन

जब से है याद तिरी कुछ भी नहीं याद मुझे

जलील मानिकपूरी

हमें याद रखना हमें याद करना

अगर कोई ताज़ा सितम याद आए

हफ़ीज़ जौनपुरी

कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे

कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था

मुनव्वर राना

यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ

दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है

शहज़ाद अहमद

दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए

बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई

आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई

इक़बाल अशहर

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

दिलों को दर्द से आबाद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

आई जब उन की याद तो आती चली गई

हर नक़्श-ए-मा-सिवा को मिटाती चली गई

जिगर मुरादाबादी

तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी

कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो

जौन एलिया

भुलाई नहीं जा सकेंगी ये बातें

तुम्हें याद आएँगे हम याद रखना

हफ़ीज़ जालंधरी

मुज़फ़्फ़र किस लिए भोपाल याद आने लगा

क्या समझते थे कि दिल्ली में होगा आसमाँ

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

कहीं ये तर्क-ए-मोहब्बत की इब्तिदा तो नहीं

वो मुझ को याद कभी इस क़दर नहीं आए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

तुम ने किया याद कभी भूल कर हमें

हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया

बहादुर शाह ज़फ़र

वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया

लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह

मुसव्विर सब्ज़वारी

हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें

हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं

राही मासूम रज़ा

जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे

ये याद रहे हम को बहुत याद करोगे

मोहम्मद रफ़ी सौदा

यूँ जी बहल गया है तिरी याद से मगर

तेरा ख़याल तेरे बराबर हो सका

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

'अजमल'-सिराज हम उसे भूल हुए तो हैं

क्या जाने क्या करेंगे अगर याद गया

अजमल सिराज

रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ

तुम याद कर रहे हो कि याद रहे हो तुम

हैरत गोंडवी

जिस में हो याद भी तिरी शामिल

हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए

फ़िराक़ गोरखपुरी

हालत मेरी कुछ कहना मतलब नामा-बर कहना

जो मुमकिन हो तो ये कहना तुम्हारी याद आती है

जलील मानिकपूरी

याद-ए-माज़ी की पुर-असरार हसीं गलियों में

मेरे हमराह अभी घूम रहा है कोई

ख़ुर्शीद अहमद जामी

कर कुछ ऐसा कि तुझे याद रखूँ

भूल जाने का तक़ाज़ा ही सही

जव्वाद शैख़

याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़

नादान फिर वो जी से भुलाया जाएगा

मीर तक़ी मीर

तआक़ुब में है मेरे याद किस की

मैं किस को भूल जाना चाहता हूँ

कौसर मज़हरी

मुझे याद करने से ये मुद्दआ था

निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते

दाग़ देहलवी

गुज़र जाएँगे जब दिन गुज़रे आलम याद आएँगे

हमें तुम याद आओगे तुम्हें हम याद आएँगे

कलीम आजिज़

बसी है सूखे गुलाबों की बात साँसों में

कोई ख़याल किसी याद के हिसार में है

ख़ालिदा उज़्मा

याद में ख़्वाब में तसव्वुर में

कि आने के हैं हज़ार तरीक़

बयान मेरठी

तुम्हारी याद मेरा दिल ये दोनों चलते पुर्ज़े हैं

जो इन में से कोई मिटता मुझे पहले मिटा जाता

बेख़ुद देहलवी

रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया

तेरे जल्वों का असर याद आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं

जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

ख़ुमार बाराबंकवी

रुलाएगी मिरी याद उन को मुद्दतों साहब

करेंगे बज़्म में महसूस जब कमी मेरी

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

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