अज़ाब पर शेर
याद-ए-माज़ी 'अज़ाब है या-रब
छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा
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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए
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अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ
गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं
बुतों की चाह में हम तो अज़ाब ही में रहे
शब-ए-फ़िराक़ कटी रोज़-ए-इंतिज़ार आया