इफ़्तिख़ार मुग़ल
ग़ज़ल 10
अशआर 14
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं
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हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल
हम ने महताब को उस रुख़ के मुमासिल बाँधा
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मोहब्बत और इबादत में फ़र्क़ तो है नाँ
सो छीन ली है तिरी दोस्ती मोहब्बत ने
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ख़ुदा! सिला दे दुआ का, मोहब्बतों के ख़ुदा
ख़ुदा! किसी ने किसी के लिए दुआ की थी
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घेर लेती है कोई ज़ुल्फ़, कोई बू-ए-बदन
जान कर कोई गिरफ़्तार नहीं होता यार
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