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ग़ज़ल
इन में पोशीदा हैं हिकमत के ख़ज़ाने क्या क्या
कह गए बात पते की हैं सियाने क्या क्या
तबस्सुम आज़मी
ग़ज़ल
'अर्श' इस में तल्ख़ी-ए-ग़म के सिवा कुछ भी नहीं
तू किताब-ए-ज़िंदगी की सफ़्हा-गर्दानी न कर
अर्श सहबाई
ग़ज़ल
वही हैं कोई सूरत इन में बेगानी नहीं मिलती
वो चेहरे आह जिन चेहरों पे ताबानी नहीं मिलती