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ग़ज़ल
ऐन बे-होशी है हुश्यारी न समझा चाहिए
अहल-ए-ग़फ़लत की तो बेदारी भी कहलाती है नींद
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
दम निकलने पर जो आता है नहीं रुकता है फिर
देख लो क़स्र-ए-हबाब ऐ अहल-ए-ग़फ़लत दर नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
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ग़ज़ल
नर्ग़ा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से मैं सहर बन के उठा
अहल-ए-ग़फ़लत के लिए ताज़ा ख़बर बन के उठा
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
नज़्म
ग़ुलाम क़ादिर रहीला
رہيلہ کس قدر ظالم، جفا جو، کينہ پرور تھا
نکاليں شاہ تيموري کي آنکھيں نوک خنجر سے
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बेकार न जाएँगी अब वक़्त की तक़रीरें
ज़ेहनों पे उभर आईं कुछ फ़िक्र की तहरीरें
माया खन्ना राजे बरेलवी
ग़ज़ल
कल जो ग़फ़लत में पड़े थे आज वो हुशियार हैं
एक हम ही सो रहे हैं और सब बेदार हैं