aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بجرے"
एस. ई. बर्रे
लेखक
सा. एच. ए. बजरडेगार्ड
1845 - 1922
और दूर उफ़ुक़ के सागर मेंकुछ डोलते डूबते बजरे थे
पदमा मैरी एक ख़ामोश-तब्अ’ मेहनती लड़की थी जो बड़ी लगन से अपने फ़राइज़-ए-मंसबी अंजाम देती थी। महीने में एक-आध बार सिनेमा देख आती थी। और औक़ात-ए-फ़ुर्सत में दोस्तों को चीनी खाने पका कर खिलाना उसका मर्ग़ूब मशग़ला था। एक सैकंड हैंड कार ख़रीदने के लिए रुपया जमा’ कर रही थी।...
आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैंबजरे लागे बंदर-गाह पे सौदागर आते हैं
किनारे पर कोई आया था जिस का ख़ाली बजरा डोलता रहता है पानी परकोई उतरा था बजरे से
یہاں مجھے اس بات سے کوئی بحث نہیں کہ مشرق کی روایت پرستی زیادہ صحیح اور احسن ہے یا مغرب کی بغاوت پرستی؟ ان دونوں اقدار کے محاسن کا تقابلی مطالعہ کرنے کے بجائے میں صرف ایک بنیادی حقیقت کااظہار کررہا ہوں اور وہ اس وجہ سے کہ میرے خیال...
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"उर्दू किताबों में सिनेमा की दुनिया" रेख़्ता ई-बुक्स की तरफ़ से पेश किया गया एक अनोखा संग्रह है जिसमें ऐसी उर्दू किताबें शामिल हैं जो सिनेमा की दुनिया के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालती हैं। यह किताबें फिल्मों के इतिहास, कहानियाँ, कला, निर्माण और अभिनेताओं के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं।
शायरी, या ये कहा जाए कि अच्छा तख़्लीक़ी अदब हम को हमारे आम तजर्बात और तसव्वुरात से अलग एक नई दुनिया में ले जाता है वह हमें रोज़ मर्रा की ज़िंदगी से अलग होते हैं। क्या आप दोस्त और दोस्ती के बारे में उन बातों से वाक़िफ़ है जिन को ये शायरी मौज़ू बनाती है? दोस्त, उस की फ़ित्रत उस के जज़्बात और इरादों का ये शेरी बयानिया आप के लिए हैरानी का बाइस होगा। इसे पढ़िए और अपने आस पास फैले हुए दोस्तों को नए सिरे से देखना शुरू कीजिए।
बजरेبجرے
gravel
Arooz
सय्यद कलीमुल्लाह हुसैनी
छंदशास्र
Urdu Mein Adabi Tahqeeq Ke Bare Mein
क़ाज़ी अब्दुल वदूद
Islam Ke Baare Mein 100 Sawaal
इमाम मोहम्मद ग़ज़ाली
Lal Qila Ki Ek Jhalak
नासिर नज़ीर फ़िराक़ देहलवी
शिक्षाप्रद
कुछ अबुल कलाम आज़ाद के बारे में
मालिक राम
मज़ामीन / लेख
Kuchh Hindumat Ke Bare Mein
ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी, पटना
Deewan-e-Uzlat
वली उज़लत
दीवान
Gulha-e-Dagh
आफ़ताब अहमद सिद्दीक़ी रुदाैलवी
संकलन
Bure Mausam Mein
ख़ालिद जावेद
Communist Taleem Ke Bare Mein
एम. इ. कालीनन
राजनीतिक
Ghalib Ki Baz Tasanif Ke Bare Mein
कालीदास गुप्ता रज़ा
शायरी तन्क़ीद
Hare Bhare Lamhat
शब्बीर अहमद क़रार
काव्य संग्रह
इरशदात-ए-अलिया-ए-शहंशाह-ए-आर्या मेहर
रज़िया अकबर
महिलाओं की रचनाएँ
हिन्दुस्तानी तारीख़-ओ-तहज़ीब और उलूम-ए-इस्लामिया के बारे में
भारत का इतिहास
राजदा ने कहा था मेरे मुतअल्लिक़ अफ़साना मत लिखना। मैं बदनाम हो जाऊँगी। इस बात को आज तीसरा साल है और मैंने राजदा के बारे में कुछ नहीं लिखा और न ही कभी लिखूँगा। अगरचे वो ज़माना जो मैंने उसकी मोहब्बत में बसर किया, मेरी ज़िंदगी का सुनहरी ज़माना था...
किरनों के तूफ़ान से बजरे भर भर कररौशनियाँ उस घाट पर ढो गए क्या क्या लोग
دلی میں بہادر شاہ برائے نام بادشاہ تھے۔ سارا انتظام کمپنی بہادر کے ہاتھ میں تھا۔ بھلا کمپنی کو کیا غرض پڑی تھی جو ان غریب شہر والوں کی خبر لے۔ شہر والے جانیں اور ان کا کام جانے۔ خیر بادشاہ سلامت کو خبر ہوئی، بچارے کے جو کچھ اختیار...
کھانے کے دوران کوئی بات نہ ہوئی۔ ستی اور میں اپنے اپنے خیالوں میں گم تھے۔ مجھے یاد آیا کہ بابا قطب الدین بختیار کاکی رحمۃ اللہ علیہ کے وقت میں ا سی دلی میں ایک بزرگ آئے تھے۔ وہ یوں ہی سڑکوں پر سوار پھرتے۔ ان کے بارے میں...
جیسے دو اور دو چار ہوتے ہیں، ایسی صحت سے وہ تمام ضروری رسوم سرانجام دیتے ہوئے تخیل میں کہیں کا کہیں پہنچ جاتا۔ اس دن وہ محسوس کر رہا تھا کہ وہ ایک اونچی پہاڑی پر کھڑا ہے۔ پہاڑی کے دامن میں اس کو ایک خوبصورت جھیل۔ اس میں...
لیکن بنانے والوں نے حویلی بنائی تھی۔ ’’جل بھون‘‘ نہیں بنایا تھا۔ اوپر سے ’’ہتھیانکہت‘‘ برستا تھا اور نیچے برجھائی ہوئی مست ہتھنی کی طرح گھاگھرا چوٹیں کر رہی تھی۔ پہلے پھاٹک گرا، پھر دیوان خانہ۔ جب ڈیوڑھی گر گئی اور اندر کے کئی درجے بیٹھ گیے تب چودھری گلاب...
बिछ बिछ गया है दूर उफ़ुक़ के पीछे कहीं इन पानियों तक जिन पर इक नाख़ुदा पैग़म्बर की दुआओंके बजरे तैरे थे
بجرے و ناؤ چپو ڈونگی بنے نواڑے ان جمگھٹوں سے ہوکر سرشار پیرتے ہیں...
میر صاحب نے اپنے دونوں گھٹنوں کے اندر سے سر نکالتے ہوئے کہا، ’’بھائی سچ تو یہ ہے کہ غنیمت ہے کہ ہم صورت یہاں دوچار بیٹھے ہیں۔ چند روزہ زندگی خدا اسی طرح کاٹ دے، پھر مرنے کے بعد تو خدا جانے ہم افیونیوں کا کیا حشر ہوگا۔‘‘ مرزا...
एक इक कर के पंछी उड़ते जाएँ ठोर-ठिकानों सेभूक उड़े खलियानों में रुत बाजरे वाली भेजो नाँ
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