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ग़ज़ल
न अब वो ख़ुश-नज़री है न ख़ुश-ख़िसाली है
ये क्या हुआ मुझे ये वज़्अ क्यूँ बना ली है
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ग़ज़ल
रक़ीबाँ की हुआ नाचीज़ बाताँ सुन के यूँ बद-ख़ू
वगर्ना जग में शोहरा था सनम की ख़ुश-ख़िसाली का
आबरू शाह मुबारक
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
वाइज़-ए-क़ौम की वो पुख़्ता-ख़याली न रही
बर्क़-ए-तबई न रही शोला-मक़ाली न रही