aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ستواں"
सतां दाल
लेखक
तेरा सुत्वाँ जिस्म है तेराबोल कि जाँ अब तक तेरी है
नफ़ीस नाक नज़ाकत सिरात 'अद्ल बहारजमील सुत्वाँ मो'अत्तर लतीफ़ ख़ुशबू रची
जैसा कि शाहिदा ने उसको बताया था कि उसका शौहर बहुत प्यार करने वाला है, बहुत नेक ख़सलत है... लेकिन इससे ये साबित तो नहीं होता कि वो शाहिदा के लिए लाज़िमी था।सलमा हसीन थी, उभरा-उभरा जोबन- भरे भरे हाथ-पांव, कुशादा पेशानी, घुटनों तक लंबे काले बाल, सुतवां नाक और उसकी फ़िनिंग पर एक तिल।
हालाँकि बहादुर की परवरिश ज़्यादा तर उसकी फूफी ने की थी मगर उसकी बिगड़ी हुई आदतें देख कर लोग यही कहते थे कि निहाल सिंह के लाड प्यार ने उसे ख़राब किया है और यही वजह है कि वो अपने हम उम्र नौजवानों की तरह मेहनत मशक़्क़त नहीं करता। गो निहाल सिंह की हरगिज़ ख़्वाहिश नहीं थी कि उसका लड़का मज़दूरों की तरह खेतों में काम करे और सुबह से लेकर दिन ढलने तक हल चलाए। वाह-गुरूजी की कृपा से उसके पास बहुत कुछ था। ज़मीनें थीं, जिनसे काफ़ी आमदन हो जाती थी। सरकार से जो अब पेंशन मिल रही थी, वो अलग थी। लेकिन फिर भी उसकी ख़्वाहिश थी, कि बहादुर कुछ करे... क्या? ये निहाल सिंह नहीं बता सकता था। चुनांचे कई बार उसने सोचा कि वो बहादुर से क्या चाहता है। मगर हर बार बजाए इसके कि उसे कोई तसल्ली बख़्श जवाब नहीं मिलता। उसकी बीती हुई जवानी के दिन एक एक कर के उसकी आँखों के सामने आने लगते और वो बहादुर को भूल कर उस गुज़रे हुए ज़माने की यादों में खो जाता।
کسی تہذیب میں آبنوس کی طرح جھلکتا سیاہ رنگ، چپٹی ناک اور موٹے موٹے لٹکتے ہونٹ حسن کی نشانی ہیں اور کسی تہذیب میں گورا رنگ، ستواں ناک، پتلے ہونٹ اور نرگسی آنکھیں۔ چنانچہ حبشہ کا جب کوئی عیسائی مصور حضرت مسیحؑ اور مریمؑ کی رنگین تصویر بناتا ہے تو ممدوحین کے چہرے کے نقوش اور کھال کا رنگ ان کے اپنے معیارِحسن کے مطابق ہوتے ہیں۔ لہٰذا ہم کسی حبشی یا جا...
सुत्वाँستواں
straight, erect
Surkh-o-Siyah
नॉवेल / उपन्यास
अज़ीम शायर मिर्ज़ा ग़ालिब
जीवनी
सातवाँ दर
अमजद इस्लाम अमजद
काव्य संग्रह
Saatwan Phera
वाजिदा तबस्सुम
सामाजिक
Ghalib Ka Roznamcha-e-Ghadar
ख़्वाजा हसन निज़ामी
भारत का इतिहास
Satwan Shastr
फ़िक्र तौंसवी
7th Sir Syed Ahmed Khan Memorial Lecture
रफ़ीक़ ज़करिय्या
व्याख्यान
सातवाँ चराग़
मिर्ज़ा अदीब
अफ़साना
Satvan Dar
सातवाँ आँगन
सालिहा आबिद हुसैन
महिलाओं की रचनाएँ
Satwan Dar
शहरयार
Mohammadan Educational Conference Ka Satwan Salana Jalsa
अननोन ऑथर
Mirza Ghalib 200th Birth Anniversary 1797-1997
Wafat-e-Ghalib Ka Sauwan Sal
अशरफ़ क़ुदसी
संकलन
ये सब कुछ एक लम्हे के अंदर अंदर हुआ। उसने फिर मेरी तरफ़ देखा। मगर इस दफ़ा सवाल करने वाली लाज भरी आँखों से... शायद उसको अब इस बात का एहसास हुआ था कि उसकी मुस्कुराहट किसी ग़ैर मर्द के तबस्सुम से जा टकराई है।वो गहरे सब्ज़ रंग का दुपट्टा ओढ़े हुए थी। मालूम होता था कि आस-पास की हरियावल ने अपनी सब्ज़ी उसी से मुस्तआ’र ली है। उसकी शलवार भी उसी रंग की थी। अगर वो कुरता भी उसी रंग का पहने होती तो दूर से देखने वाले यही समझते कि सड़क के दरमियान एक छोटा सा दरख़्त उग रहा है।
دہلی میں وہ کون ہے جس نے حضرت ظل اللہ کو نہیں دیکھا۔ میانہ قد، بہت نحیف جسم، کسی قدر لمبا چہرہ، بڑی بڑی روشن آنکھیں، آنکھوں کے نیچے کی ہڈیاں بہت ابھری ہوئی، لمبی گردن، چوکا ذرا اونچا، پتلی ستواں ناک، بڑا دہانہ، گہری سانولی رنگت، سرمنڈا ہوا، چھدری ڈاڑھی، کلوں پر بہت کم، ٹھوڑی پر ذرا زیادہ، لبیں کتری ہوئی، ستر برس سے اونچی عمر تھی۔ بال سفید بھک ہو ...
"देखा नहीं था उस दिन? कैसे रामालिंगम की बेटी से हंस-हंस कर बातें कर रहे थे।"कुछ भी हो, माँ के उस मर्द को गालियाँ देने से एक हद तक मेरा दिल ठंडा हो गया था मगर बुढ्ढे की बातें रह रह कर मेरे कानों में गूँज रही थीं और मैं सोच रही थी कहीं मिल जाए तो मैं और उसके बाद मैं अपने बेबसी पर हँसने लगी। ज़रा देर बाद में उठ कर अंदर आ गई। सामने क़दे आदम आइना था। मैं रुक गई और अपने सरापे को देखने लगी। कूल्हों से नीचे नज़र गई तो फिर मुझे उसकी चार-चार, पाँच-पाँच बच्चों वाली बात याद आ गई और मेरे गालों की लवें तक गर्म होने लगीं। वहाँ कोई नहीं था। फिर मैं किससे शर्मा रही थी? हो सकता है बदन का यही हिस्सा जिसे लड़कियाँ पसंद नहीं करतीं, मर्दों को अच्छा लगता हो। जैसे लड़के सीधे और सुतवां बदन का मज़ाक़ उड़ाते हैं और नहीं जानते वही हम औरतों को अच्छा लगता है। इसका ये मतलब नहीं कि मर्द को सूखा-सड़ा होना चाहिए। नहीं उनका बदन हो तो ऊपर से फैला हुआ। मतलब चौड़े कांधे, चकली छाती और मज़बूत बाज़ू। अलबत्ता नीचे से सीधा और सुतवां ही होना चाहिए।
और मैं चिक़ उठा कर तेज़ी से उसके पास पहुँच गया। उज़मा के साथ एक और लड़की बैठी थी जिसे मैंने बिल्कुल न देखा और जिसने मुझे देख कर मुँह जल्दी से दूसरी तरफ़ फेर लिया। मैं ज़रा ठिटक गया। इतने में भाँजी भी आगई और उस लड़की को मुझसे परदा करते देख कर बोल उठी, "हद हो गई, भला मामूँ से क्या परदा?""हाँ भई, भला ये भी कोई परदे का मौक़ा है।" उज़मा ने उस लड़की को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा। इस दौरान में वो लड़की शर्म से सिकुड़ी जा रही थी और उसके कानों की लवें सुर्ख़ हो रही थीं। मैं उज़मा और भाँजी से बातें कर रहा था। बातें करते हुए मैंने दो तीन बार नज़रें बचा कर उस लड़की को देखा। बारीक होंट, सुतवाँ नाक, झालरें और पलकें और हल्का गुलाबी रंग। चुपचाप बे ज़बान जैसे मोम बत्ती... ये थी राजदा।
ग़ज़ाली आँखें, सुतवाँ नाक, ख़ूबसूरत होंट, किताबी चेहरा, लंबी गर्दन जिस पर तिल की मौजूदगी इस बात की ‘अलामत थी कि शायद ख़ुदा ने नज़र-ए-बद के डर से टीका लगा डाला। नाज़ुक-अंदाम और सर्व-क़द। ये किसी शा’इर का ख़्वाब नहीं बल्कि जीती-जागती सौम्या थी। इंतिहाई ज़हीन और ज़िंदगी से भरपूर। ख़ुद पर ग़ुरूर, हुस्न का नहीं बल्कि ‘औरत होने का। उसको आईने की परवाह ही न थी ...
کمرے میں داخل ہونے سے پہلے ہم نے اپنی دائیں ہتھیلی کا پسینہ پونچھ کر ہاتھ مصافحہ کے لیے تیار کیا۔ سامنے کرسی پر ایک نہایت بارعب انگریز نظر آیا۔ سر بیضوی اور ویسا ہی صاف اور چکنا۔ جس پر پنکھے کا عکس اتنا صاف تھا کہ اس کے بلیڈ گنے جا سکتے تھے۔ آج کل کے پنکھوں کی طرح اس پنکھے کا وسطی حصہ نیچے سے چپٹا نہ تھا، بلکہ اس میں ایک گاؤ دم چونچ نکلی ہوئی تھی، ...
چار پانچ دن میں سروس رولز بن گئے۔عورت انہیں لے کر خوشی خوشی سیکرٹری ایجوکیشن کے پاس پہنچی۔ سیکرٹری ایجوکیشن ایک نازک ڈیل ڈول کے انسان تھے۔ ان کے نقوش بھی نازک اور دلچسپ تھے۔ گھنے ابرو اور پلکیں، چمکتی آنکھیں، خوب فراخ دہانہ، لمبی سی ستواں ناک جو اوپر کی طرف مڑی ہوئی تھی۔ گویا ان کا ایک "ولندیزی" قسم کا چہرہ تھا۔ عورت کو یہ بات دلچسپ لگتی تھی۔ اس نے پنجاب میں چند ایسے دوسرے چہرے بھی دیکھے تھے۔ پنجاب میں نسلیں کسی درجہ مخلوط ہیں۔ اس نے سوچا اور سروس رولز ان کی طرف بڑھائے۔ سیکرٹری ایک خوش مزاج بھلے مانس تھے۔ وہ عورت سے شفقت اور مہربانی سے پیش آتے تھے۔ انہوں نے ہمدردی سے کاغذات پر نظر ڈالی اور کہا،
فرمایا، ’’نہیں، اماں، ابھی نہیں، جھولوں پر لوگ بیٹھ لیں اس وقت پکوان شروع ہو۔‘‘ یہ کہہ نواب زینت محل اور نواب تاج محل کی طرف دیکھا۔ وہ دونوں کھڑی ہو گئیں۔تاج محل تو ایسی خوبصورت نہ تھی۔ ہاں، زینت محل کی کچھ نہ پوچھو، عجب قبول صورت پائی تھی۔ شہر بھر میں ایک تھیں، ان کی جامہ زیبی اور حسن کی تعریف ہی سن کر بادشاہ نے ان سے شادی کی تھی، رنگت ایسی سرخ و سفید تھی جیسے گلاب کی پتی، یا شہاب اور میدہ، کتابی چہرہ، بڑی بڑی روشن آنکھیں، لمبی ستواں ناک، ہاں بھویں بالکل نہ تھیں۔ اس کی کمی کو سرمے کی بھویں بنا کر پورا کیا جاتا، ہاتھوں میں دھانی چوڑیاں، سر پر تاروں بھرا گلنار دوپٹا، جسم پر سرخ انگیا کرتی، باون کلی کا سبز زر بفت کا پائجامہ، موتیوں جڑی گھیتلی جوتی۔ آنکھوں میں گہرا گہرا سرمہ، دانتوں میں مسی، ہونٹوں پر لاکھا۔ بس یہ معلوم ہوتا تھا کہ پرستان کی پری امریوں میں اتر آئی ہے۔
दूसरे चौथे ही मोटर साईकल पर एक शख़्स आया...। बड़ी बेगम बहाने से उठीं और दादी को बुला कर झँकवा दिया।“अच्छा तो है कर दो...”, दादी ने ख़ुश हो कर कहा।
दरख़्तों पे हर सू वो शोर-ए-तुयूरवो छुपता सा सूरज वो मह का ज़हूर
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