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ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
नज़्म
दो इश्क़
इस कुंज से फूटेगी किरन रंग-ए-हिना की
इस दर से बहेगा तिरी रफ़्तार का सीमाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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शेर
माज़ी-ए-मरहूम की नाकामियों का ज़िक्र छोड़
ज़िंदगी की फ़ुर्सत-ए-बाक़ी से कोई काम ले
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
वो हज़र बे-बर्ग-ओ-सामाँ वो सफ़र बे-संग-ओ-मील
वो नुमूद-ए-अख़्तर-ए-सीमाब-पा हंगाम-ए-सुब्ह
अल्लामा इक़बाल
शेर
तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
ख़ुदा वो वक़्त न लाए
वुफ़ूर-ए-दर्द से सीमाब होके रह जाए
तिरा शबाब फ़क़त ख़्वाब हो के रह जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
आसमाँ मजबूर है शम्स ओ क़मर मजबूर हैं
अंजुम-ए-सीमाब-पा रफ़्तार पर मजबूर हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'सीमाब' बे-तड़प सी तड़प हिज्र-ए-यार में
क्या बिजलियाँ भरी हैं दिल-ए-बे-क़रार में