aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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परिणाम "شطرنج"
बहस शतरंज शे'र मौसीक़ीतुम नहीं थे तो ये दिलासे रहे
एक दिन एक बेस्वा का बाप और भाई जो दर्ज़ियों का काम जानते थे, सीने की एक मशीन रख कर बैठ गए। होते-होते एक हज्जाम भी आ गया और अपने साथ एक रंगरेज़ को भी लेता आया। उसकी दुकान के बाहर अलगनी पर लटकते हुए तरह-तरह के रंगों के दुपट्टे हवा में लहराते हुए आँखों को भले मा’लूम होने लगे। चंद ही रोज़ गुज़रे थे कि एक टट-पुंजिए बिसाती ने जिसकी दुकान शह्र में चलती न थी, बल्कि उसे दुकान का किराया निकालना भी मुश्किल हो जाता था शह्र को ख़ैर-बाद कह कर इस बस्ती का रुख़ किया। यहाँ पर उसे हाथों-हाथ लिया गया और उसके तरह-तरह के लेवेंडर, क़िस्म-क़िस्म के पाउडर, साबुन, कंघियाँ, बटन, सूई, धागा, लेस, फीते, ख़ुशबू-दार तेल, रूमाल, मंजन वग़ैरह की ख़ूब बिक्री होने लगी।
एक शतरंज-नुमा ज़िंदगी के ख़ानों मेंऐसे हम शाह जो प्यादों के निशाने निकले
"आपा?" बद्दू लापरवाही से दोहराता।, "बैठी है बुलाऊं?"भाई साहब घबरा कर कहते, "नहीं नहीं। अच्छा बद्दू, आज तुम्हें, ये देखो इस तरफ़ तुम्हें दिखाएं।" और जब बद्दू का ध्यान इधर उधर हो जाता तो वो मद्धम आवाज़ में कहते, "अरे यार तुम तो मुफ़्त का ढिंडोरा हो।"
ग़रज़ सारा मुल्क नफ़्स-परवरी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। सबकी आँखों में साग़र-ओ-जाम का नशा छाया हुआ था। दुनिया में क्या हो रहा है... इल्म-ओ-हिकमत किन-किन ईजादों में मसरूफ़ है... बहर-ओ-बर पर मग़रिबी अक़्वाम किस तरह हावी होती जाती हैं... इसकी किसी को ख़बर न थी। बटेर लड़ रहे हैं, तीतरों में पालियाँ हो रही थीं, कहीं चौसर हो रही है। पौ-बारा का शोर मचा हुआ ह...
शतरंजشطرنج
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Shatranj
एम ए राहत
रोमांटिक
शतरंज नामा
मोहम्मद सूली
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Risala Shatranj
पंडित राज नरायण अरमान
शतरंज की बिसात ये ज़िन्दगी
गीता भाटीया
शाइरी
अननोन ऑथर
Qawaid-e-Tash-o-Shatranj
बाबू डालचंद
Usool-e-Shatranj
Hamidullah Bin Shaikh Mohammad Abdullah
रिसाला-ए-शतरंज-ओ गुंजिफ़ा
सय्यद मोहम्मद अब्दुल्लाह
कहने लगा, “हुज़ूर! आप तो जानते ही हैं। इस वक़्त भला कौन आता है?”बहुत मायूस हुआ। बाहर निकल कर सोचने लगा कि अब क्या करूं? और कुछ ना सूझा तो वहां से मिर्ज़ा साहब के घर पहुंचा। मालूम हुआ अभी दफ़्तर से वापस नहीं आये। दफ़्तर पहुंचा, देख कर बहुत हैरान हुये। मैंने सब हाल बयान किया। कहने लगे, “तुम बाहर के कमरे में ठहरो, थोड़ा सा काम रह गया है। बस अभी भुग्ता के तुम्हारे साथ चलता हूँ। शाम का प्रोग्राम क्या है?”
सलीम शुरू ही से अपनी आवाज़ से नाआश्ना रहा है, और होता भी क्योंकर, जब उसके सीने में ख़यालात का एक हुजूम छाया रहता था। बा'ज़ औक़ात ऐसा भी हुआ है कि वो बैठा बैठा उठ खड़ा हुआ है और कमरे में चक्कर लगा कर लंबे-लंबे सांस भरने शुरू कर दिए... ग़ालिबन वो अपने अंदरूनी इंतिशार से तंग आकर उन ख़यालात को जो उसके सीने में भाप के मानिंद चक्कर लगा रहे होते, सांसों के ज़रीये बाहर निकालने का कोशां हुआ करता था।
एक फ़्रांसीसी मोफ़क्किर कहता है कि मूसीक़ी में मुझे जो बात पसंद है वो दरअसल वो हसीन ख़वातीन हैं जो अपनी नन्ही नन्ही हथेलियों पर थोड़ियां रखकर उसे सुनती हैं। ये क़ौल मैंने अपनी बर्रियत में इसलिए नक़ल नहीं किया कि मैं जो कव़्वाली से बेज़ार हूँ तो इसकी असल वजह वो बुज़ुर्ग हैं जो महफ़िल-ए-समाअ को रौनक़ बख़्शते हैं। और न मेरा ये दावा कि मैंने प्यानो और पलंग क...
(मुनकिर नकीर दोनों अंगुश्त बदनदाँ रह गए और सोचने लगे। कई मिनट गुज़र गए, यकायक फ़िज़ा में हल्का हल्का लहन दौड़ने लगा। ग़ालिब भौंचक्के हो कर इधर उधर देखने लगे लेकिन मुनकिर नकीर मोअद्दब और नमाज़ की सी नीयत बांध कर सर झुकाकर खड़े हो गए, लहन लहज़ा बह लहज़ा बढ़ता गया। यकायक साज़ ख़ामोश हो गया और एक बा रोब लेकिन बारीक आवाज़ सुनाई दी।)
“इससे क्या होता है?”“आइन्दा चोट लगे तो चीख़ नहीं निकलती।”
मिर्ज़ा ग़ालिब जितने बड़े शायर थे उतने ही बल्कि उससे कुछ ज़्यादा ही दानिशमंद और दूर अंदेश आदमी थे। उन्हें मालूम था कि एक वक़्त ऐसा आएगा जब उनके वतन में उनका कलाम सुख़न फ़ह्मों के हाथों से निकल कर हम जैसे तरफ़दारों के हाथ पड़ जाएगा, इसलिए उन्होंने ब-कमाल-ए-होशियारी ये मशविरा दिया था कि भाइयो, मेरा फ़ारसी कलाम पढ़ो और उर्दू कलाम से एहतिराज़ करो क्योंकि इस...
“भाई जान।”“क्या है?” वो अपने एक दोस्त के साथ शतरंज खेल रहे थे।
ये जीना भी शतरंज ही ने सिखायाकि चालों के लगने पे चालें बदलना
वालिद साहब ने कहा, “बख़ुदा जितनी देर खड़ा मैच देखता रहा गिड़गिड़ा कर दुआएं मांगता रहा कि परवरदिगार तू ही इसका हाफ़िज़-ओ-नासिर है। इख़्तिलाज के दौरे पर दौरे पड़ रहे थे कि देखिए क़िस्मत क्या दिखाती है आज। अरे भई खेलने को मैं मना नहीं करता। शतरंज खेले, पचीसी खेले, परों के गेंद से एक खेल खेला जाता है, भला सा नाम है उसका वो खेले, टेनिस तक ग़नीमत है। मगर ये तो ...
याँ तो आती नहीं शतरंज-ज़माना की चालऔर वाँ बाज़ी हुई मात चली जाती है
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