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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
रह गई रस्म-ए-अज़ाँ रूह-ए-बिलाली न रही
फ़ल्सफ़ा रह गया तल्क़ीन-ए-ग़ज़ाली न रही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से
जो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहाँ पियो तो हराम है
जिगर मुरादाबादी
कहानी
सआदत हसन मंटो
नज़्म
नानक
आश्कार उस ने किया जो ज़िंदगी का राज़ था
हिन्द को लेकिन ख़याली फ़ल्सफ़ा पर नाज़ था
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
ज़ोहद और रिंदी
सुनता हूँ कि काफ़िर नहीं हिन्दू को समझता
है ऐसा अक़ीदा असर-ए-फ़लसफ़ा-दानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जुगनू
हिमाक़तों का मिरी फ़ल्सफ़ा समझ न सकी
वो माँ कभी जिसे चौंकाने को मैं लुक न सका
फ़िराक़ गोरखपुरी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
ग़ज़ल
मुबारक हो ज़ईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ा-रानी
जवानी बे-नियाज़-ए-इबरत-ए-अंजाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
तंज़-ओ-मज़ाह
मिसरे का जवाब शे’र से देता हूँ,
कमज़ोरी मेरी सेहत भी, कमज़ोर मिरी बीमारी भी