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कहानी
ठाकुर साहब के दो बेटे थे। बड़े का नाम सिरी कंठ सिंह था। उसने एक मुद्दत-ए-दराज़ की जानकाही के...
प्रेमचंद
तंज़-ओ-मज़ाह
भला मिर्ज़ा ऐसा मौक़ा कहाँ ख़ाली जाने देते थे। मुझे मुख़ातिब करके कहने लगे, याद रखो! याद र...
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
रेखाचित्र
मंटो की अफ़साना निगारी दो मुतज़ाद अनासिर के तसादुम का बाइस है। उसके वालिद ख़ुदा उन्हें बख़्...
सआदत हसन मंटो
तंज़-ओ-मज़ाह
यानी अपने रूप का अंग जान कर जवानी के ज़हीन बादशाह ने सीना, दिल, आँखों और कूल्हों में बड़ा इज़...
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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तंज़-ओ-मज़ाह
एक साहब तो अपनी पसंद के जवाज़ में सिर्फ़ ये कह कर चुप हो गए कि,
छुटती नहीं मुँह से ये काफ़ी लगी हुई