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तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
तर्क-ए-मोहब्बत के बा'द
पेश कर सकता हूँ लेकिन तुझे बहलाने को
चाँदनी-रात में मचले हुए रूमान की याद
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
तू घर से निकल आए तो
आँखों को झुकाए हुए पल्लू को उठाए
मुखड़े पे लिए सुब्ह के मचले हुए साए
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
लेख
مٹ رہے ہیں جو ہیں اپنی آن پر مچلے ہوئے آج گذری خیریت سے تو نہیں خیر ان کی کل...
सय्यद एहतिशाम हुसैन
ग़ज़ल
दिन के उजालों में शायद मैं ख़ुद से बिछड़ा रहता हूँ
रात की तारीकी में इक ख़्वाहिश मचले ख़ामोशी से
रफ़ीक़ ख़याल
नज़्म
तवहहुम
सर्द ओ ताबिंदा सी पेशानी वो मचले हुए अश्क
दिन में नूर-ए-माह-ओ-अंजुम के सिवा कुछ भी न था

