aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "چاقو"
चारू चंद्र सान्याल
संपादक
चारू देव शास्त्री
लेखक
राजा छत्तोलाल
चाव ली पो
श्री चारू चन्द्र भण्डारी
उन की अपील है कि उन्हें हम मदद करेंचाक़ू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिए
उस रोज़ शाम के क़रीब जब वो अड्डे में आया तो उसका चेहरा ग़ैर-मामूली तौर पर तमतमाया हुआ था। हुक़्क़े का दौर चलते चलते जब हिंदू-मुस्लिम फ़साद की बात छिड़ी तो उस्ताद मंगू ने सर पर से ख़ाकी पगड़ी उतारी और बग़ल में दाब कर बड़े मुफ़क्किराना लहजे में कहा, “ये किसी पीर की बददुआ का नतीजा है कि आए दिन हिंदूओं और मुसलमानों में चाक़ू, छुरियां चलती रहती हैं और मैंने अपने ब...
माधव कुर्सी से उठ कर सौगंधी के पास बैठ गया, “और मैंने तुझे ठीक दो बजे सपने में देखा... जैसे तू फूलों वाली साड़ी... अरे बिल्कुल यही साड़ी पहने मेरे पास खड़ी है, तेरे हाथों में... क्या था तेरे हाथों में! हाँ, तेरे हाथों में रूपों से भरी हुई थैली थी। तू ने ये थैली मेरी झोली में रख दी और कहा, माधव तू चिंता क्यों करता है...? ले ये थैली... अरे तेरे मेरे रु...
सतर-ए-मू उस की ज़ेर-ए-नाफ़ की हाएजिस की चाक़ू-ज़नों को ताब नहीं
“यही कि हिंदुस्तान वाले हमारे दरिया बंद कर देंगे।”“क्यों?”
चाक़ूچاقو
knife
Yeh Chaku Samay
विष्णु खरे
1980अनुवाद
Toofan
1961
Bhudan-e-Yag : Kya Aur Kyon ?
1957
छिपा महल
Jo Chaho Tum
सय्यद मोहम्मद अली शाह ज़ैदी
2023रोमांटिक
हिन्दी पद्य पीयूष
1943
Baqiyaat-e-Chaaq
मोहम्मद अब्दुल बाक़ी
1970काव्य संग्रह
Jo Chahon Tum
2023नॉवेल / उपन्यास
पहले छुरा भोंकने की इक्का दुक्का वारदात होती थीं, अब दोनों फ़रीक़ों में बाक़ायदा लड़ाई की ख़बरें आने लगी जिनमें चाक़ू-छुरियों के इलावा कृपाणें, तलवारें और बंदूक़ें आम इस्तेमाल की जाती थीं। कभी-कभी देसी साख़्त के बम फटने की इत्तिला भी मिलती थी।अमृतसर में क़रीब क़रीब हर एक का यही ख़्याल था कि ये फ़िर्क़ावाराना फ़सादात देर तक जारी नहीं रहेंगे। जोश है, जूंही ठंडा हुआ, फ़िज़ा फिर अपनी असली हालत पर आजाएगी। इससे पहले ऐसे कई फ़साद अमृतसर में हो चुके थे जो देर पा नहीं थे। दस से पंद्रह रोज़ तक मार कटाई का हंगामा रहता था, फिर ख़ुद बख़ुद फ़िरो हो जाता था। चुनांचे पुराने तजुर्बे की बिना पर लोगों का यही ख़याल था कि ये आग थोड़ी देर के बाद अपना ज़ोर ख़त्म करके ठंडी हो जाएगी। मगर ऐसा न हुआ, बलवों का ज़ोर दिन ब दिन बढ़ता ही गया।
और भूक शाइरी बन गईउँगली चाक़ू से कट गई
यहाँ पहली बार हिन्दुस्तान की सरहद पर इस्लाम का पर्चम लहराया था। मुसावात और उख़ुव्वत और इंसानियत का पर्चम।सब मर गए।
चाक़ू पे है निशान किसी बे-गुनाह काक़ातिल तो हाथ में लिए ख़ंजर चला गया
फिर सब गाने बजाने लगे। लीला ने मुझसे भी कहा कि गाओ। लेकिन उस वक़्त मेरे दिल में उस बला का ग़म था कि मैं हरगिज़ न गा सकता था। ऐसा मा'लूम होता था कि सारी एशिया के पहाड़ मेरे अंदर समा गए हैं। जब लीला ने इसरार किया तो वो भी प्यार से बोली,“आख़िर गा क्यों नहीं देते?”
चाक़ू से एक एक रग-ओ-रेशे को काटूँऔर भयानक सच्चाई का दरिया फूटे
“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुसलमान मरे हैं... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी भी खाते में नहीं गए। एक लाख हिंदू मार कर मुसलमानों ने ये समझा होगा कि हिंदू मज़हब मर गया है, लेकिन वो ज़िंदा है और ज़िंदा रहेगा। इसी तरह एक लाख मुसलमान क़त्ल करके हिंदुओं ने बग़लें बजाई होंगी कि इस्लाम ख़त्म होगया है, मगर हक़ीक़त आपके सामने है कि इस्लाम पर एक हल्की सी ख़राश भी नहीं आई... वो लोग बेवक़ूफ़ हैं जो समझते हैं कि बंदूक़ों से मज़हब शिकार किए जा सकते हैं... मज़हब, दीन, ईमान, धर्म, यक़ीन, अक़ीदत... ये जो कुछ भी है हमारे जिस्म में नहीं, रूह में होता है... छुरे, चाक़ू और गोली से ये कैसे फ़ना हो सकता है?”
डॉक्टर पिंटू बौखला गया, “मैं कब ले रहा हूँ... ये दे रहे थे!”“साला... हमसे फ़ीस लेते हो... वापस करो ये नोट!” मम्मद भाई के लहजे में उसके ख़ंजर ऐसी तेज़ी थी।
रात भर न जाने कितनी देर परेशानियाँ अकेला पाकर शबख़ून मारती हैं। न जाने रास्ते ही में तो सब न ख़त्म हो जाऐंगे। आजकल तो इक्का-दुक्का नहीं पूरी-पूरी रेलें कट रही हैं। पचास बरस ख़ून से सींच कर खेती तैयार की और आज वो देस निकाला लेकर नई ज़मीन की तलाश में उफ़्ताँ-ओ-ख़ीज़ाँ चल पड़ी थी। कौन जाने नई ज़मीन उन पौदों को रास आए न आए। कुमला तो न जाऐंगे। ये ग़रीब-उल-वतन ...
उफ़ दुनिया में किसी का भरोसा नहीं। अपनी माँ अगर जान की दुश्मन हो जाएगी। वैसे ही हर वक़्त टोकती रहती हैं। ये ना करो, वो ना करो, इतना ना पढ़ो, इतना ना खेलो, इतना ना जियो।“चाक़ू कहाँ है?” छम्मन मियाँ ने कोहनियों के बल झुक कर पूछा।
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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