aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "کلکتہ"
मग़रिबी बंगाल उर्दू अकेडमी, कोलकाता
पर्काशक
हल्क़ा-ए-तरवीज-ए-अदब, कोलकाता
डॉ. रफ़ीक़ अनवर एण्ड ब्रदर्स, कलकत्ता
केलीग्राफ़ी, कोलकाता
अल-बलाग़ प्रेस, कोलकाता
अरीब पब्लिकेशन्स, कोलकाता
अख़बार-ए-मशरिक़ पब्लिकेशन्स, कोलकाता
अनवर बुक डिपो, कोलकाता
अदबी मंच पब्लिकेशन्स, कोलकाता
दी मुस्लिम इंस्टीट्यूट, कोलकाता
मकतबा तालीमात, कोलकाता
आरज़ू मजलिस, कोलकाता
अल-मुजीब एजुकेशनल एण्ड वेलफेयर ट्रस्ट, कोलकाता
सितारा-ए-हिन्द प्रेस लिमिटेड, कोलकाता
उर्दू राइटर्स गिल्ड, कोलकाता
हाँ, तो मैं कहाँ हूँ, अभी मेरे हवास दुरुस्त नहीं, लेकिन ये ज़मीन और ये आसमान तो कुछ जाने बूझे मालूम होते हैं। लोगों को एक तरफ़ बढ़ता हुआ देख रहा हूँ। मैं भी उन्हीं के साथ हो लूँ... “पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं...” अब इन रास्तों पर...
ठाकुर साहब के दो बेटे थे। बड़े का नाम सिरी कंठ सिंह था। उसने एक मुद्दत-ए-दराज़ की जानकाही के बाद बी.ए. की डिग्री हासिल की थी। और अब एक दफ़्तर में नौकर था। छोटा लड़का लाल बिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था। भरा हुआ चेहरा चौड़ा सीना भैंस...
जैसा कि मैं अ’र्ज़ कर चुका हूँ, ज़िंदगी बड़े हमवार तरीक़े पर उफ़्तां-ओ-ख़ेज़ां गुज़र रही थी स्टूडियो का मालिक “हुरमुज़ जी फ्रॉम जी” जो मोटे मोटे लाल गालों वाला मौजी क़िस्म का ईरानी था, एक अधेड़ उम्र की ख़ोजा ऐक्ट्रस की मोहब्बत में गिरफ़्तार था। हर नौ-वारिद लड़की के पिस्तान...
कलकत्ता के हसीनों को जब देख लेता हूँउस वक़्त दिल में होता है सौदा-ए-लखनऊ
कलकत्ता की मशहूर मुग़न्निया गौहर जान एक मर्तबा इलाहाबाद गई और जानकी बाई तवाइफ़ के मकान पर ठहरी। जब गौहर जान रुख़्सत होने लगी तो अपनी मेज़बान से कहा कि “मेरा दिल ख़ान बहादुर सय्यद अकबर इलाहाबादी से मिलने को बहुत चाहता है।” जानकी बाई ने कहा कि “आज मैं...
कोलकाता पर शायरी
कलकत्ताکلکتہ
Calcutta city
ग़ालिब
टी एन राज़
व्याख्या
ग़ालिब का सफ़र-ए-कलकत्ता और कलकत्ते का अदबी मार्का
ख़लीक़ अंजुम
शोध
ग़ालिब और कलकत्ता
शाहिद माहुली
इंतिख़ाब / संकलन
Ghalib Kolkata Mein
शकील अफ़रोज़
Kalkatta Ke Qadeem Urdu Matabe Aur Unki Matbuat Ek Tazkira
सय्यद मुक़ीत-उल-हसन
Calcutta Ka Balwa
आर. एल. गुप्ता
मसनवी
Shumara Number-011,012
फ़े सीन एजाज़
Nov, Dec 2008इंशा, कोलकाता
Shumara Number-009,010
Sep, Oct 2002इंशा, कोलकाता
Shumara Number-040
मोहम्मद निज़ामुद्दीन
Jan, Jun 1995रूह-ए-अदब, कोलकाता
Kolkata Ki Urdu Sahafat Aur Main
रिज़्वानुल्लाह
पत्रकारिता
Kolkata Men Urdu Ka Pahla Mushaira Aur Prince Dillan Ka Yadgar Mushaira
शान्ती रंजन भट्टा चारिया
Shumara Number-010
इंशा, कोलकाता
Insha
इंशा,कोलकाता
Dec 2010इंशा,कोलकाता
Sadi Shumara: Shumara Number-001
Jan 1995इंशा, कोलकाता
जब मैं नई टर्म के आग़ाज़ पर होस्टल पहुँची तो इस हुलिए से कि मेरे सर और चेहरे पर पट्टी बँधी हुई थी। अब्बा को मैंने लिख भेजा कि लेबोरेट्री में एक तजुर्बा कर रही थी, एक ख़तरनाक माद्दा भक से उड़ा और उससे मेरा मुँह थोड़ा सा जल गया।...
ग़ालिब: ठहरो ठहरो, मैं ये सब कुछ नहीं जानता। मैंने ज़िंदगी में एक शे’र कहा था जिस पर मेरा अक़ीदा है जो चाहो समझ लो: हम मुवह्हिद हैं हमारा कैश है तर्क-ए-रूसूम...
महरूम हूँ मैं ख़िदमत-ए-उस्ताद से 'मुनीर'कलकत्ता मुझ को गोर से भी तंग हो गया
عباس نے پوچھا ، ’’کہاں جاؤ گے؟‘‘ سعید نے جواب دیا، ’’کہاں جاؤں گا،یہی تو سوچ رہا ہوں۔ سردیوں میں کہاں جانا چاہیے۔ کوئی ایسی جگہ بتاؤ،جہاں موسم معتدل ہو؟‘‘ ’’بمبئی چلاجاؤں ۔ کلکتہ بھی بُرا نہیں لیکن۔۔۔ لیکن۔۔۔ کرسمس تو گزر چکا، کرسمس کو چھوڑو۔۔۔ تو بمبئی چلا جاؤں۔۔۔...
(एक ग़ैर मुल्की कौंसिल के मकतूब जो उसने अपने अफ़्सर आला को कलकत्ता से रवाना किए) 8 अगस्त 1943 –कलाइव स्ट्रीट, मून शाईन ला।...
मैं ग्रांट मेंडीकल कॉलेज कलकत्ता में डाक्टरी का फाईनल कोर्स कर रहा था और अपने बड़े भाई की शादी पर चंद रोज़ के लिए लाहौर आ गया था। यहीं शाही मुहल्ले के क़रीब कूचा ठाकुर दास में हमारा जहां आबाई घर था, मेरी मुलाक़ात पहली बार ताई इसरी से हुई।...
آدمی جس قدر کہ دوسرے پر بھروسے کرتے جاتے ہیں، خواہ اپنی بھلائی اور اپنی ترقی کا بھروسہ گورنمنٹ ہی پر کیوں نہ کریں (یہ امر بدیہی اور لا بدی ہے) وہ اسی قدر بے مدد اور بے عزت ہوتے جاتے ہیں۔ اے میرے ہم وطن بھائیو! کیا تمہار ا...
कुछ दिनों बाद मिर्ज़ा साहिब रजिस्ट्रार हो कर पटने चले गए और इम्तिहानात के लिए, जहां तक सीटें फ़राहम करने और उनको तर्तीब देने का सवाल था, कुंदन को पूरे इख़्तियारात मिल गए। इम्तिहानात से आगे बढ़कर सरकारी और ग़ैरसरकारी तक़रीबों में नशिस्तों के इंतिज़ाम का फ़रीज़ा भी रफ़्ता-रफ़्ता कुंदन...
’’کونسل میں بہت سید، مسجد میں فقط جمن۔‘‘ بہت خوب، بہت خوب، فرماتے ہیں کہ ایک بار دلی جانا ہوا۔ زمانہ کوئی 1914ء کا۔ وائسرائے بہادر کلکتہ سے منتقل ہو کر دلی آ چکے تھے۔ اور دلی بڑی تیزی کےساتھ ’’نئی دلی‘‘ بنتی جار ہی تھی۔ اجلاس امپریل کونسل کا...
आनंद! ख़त में एक दो दिन देर हो जाने की कोई ख़ास वजह नहीं, दफ़्अतन ही मेरी सलाह कलकत्ता जाने की हो गई है। बात ये है कि किसी ज़रूरी काम से अचानक इन्द्रनाथ कलकत्ते जा रहा है। मुझे यहाँ काम तो आज कल है नहीं। कॉलेज बंद है और...
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